कविता

माँ

तू सबसे अलग
सबसे जुदा,
अलग तेरी हर अदा है।
दुनिया के रंगमंच पर
जीवन के नाटक में,
अलग तेरा किरदार है।
तू धरती है
तेरी गोद में,
अठखेलियां करती बहती नदियाँ
ममता की धार है।
करती है जो
जीवन का संचार निरंतर है।
तेरी ममता का भंडार
असीम, अमृतसम,
उसकी महिमा अपार है।
तू लूटाए
जिस पर ममता,
धन्य वो,
हो जाता जीवन उसका उद्धार है।
तुझसे ही सृष्टि
जीवन पर तेरा,
यह महान उपकार है।
तू सबसे अलग
सबसे जुदा,
गौरवमयी तेरी गाथा है।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]