लघुकथा

पौधों से प्रेम

पौधों से प्रेम

गीतिका को पेड़- पौधों से विशेष लगाव था| कोई बेवजह पौधों को नुकसान पहुंचाए उसे बेहद नागवार था |घर के सामने पार्क में गीतिका ने कई बडे पेड़ो के पौधे लगाये |ये सोंच के खुश होती की कभी ये पौधे घने छायादार बन जायेंगे और वायु को स्वच्छ बनायेगे| रोज सुबह शाम गीतिका पार्क जाती पौधो से बात करती मानो उनका हाल पूँछ रही हो | आने जाने वाले उसे देखते और पागल कह कर चले जाते | गीतिका पार्क में खेलते बच्चों को भी पेड़ पौधों से प्यार करना सिखाती उन्हे बताती कि ये भी हमारे जैसे होते हैं इन्हे नुकसान नही पहुंचाना चाहिये | बच्चे हँसते हैं और खेलने लगते हैं | गीतिका भी तितलियों ,मधुमक्खियों को मंडराते देख खुश होती है |
पर्यावरण के प्रति सजग गीतिका समाज को इतना लापरवाह देख कर दुखी होती है | गीतिका ने अपने घर में भी बहुत पौधे लगा रक्खे थे |कुंद के पौधे से उसे विशेष लगाव था उसे वो अपना दोस्त मानती थी उससे बाते करना ,गीत उनाना उसे बहुत अच्छा लगता था| उसके पौधों की हरीतिमा में अजब सी चमक थी जो भी उसके पौधे देखता उनकी ओर आकर्षित हो जाता था| कालेज से आने के बाद गीतिका कुछ देर पौधो के पास बिताती | एक दिन उसके घर में छोटा सा उत्सव था कई मेहमान आये थे| गीतिका भी व्यस्त थी | सभी मेहमानो के जाने के बाद गीतिका बाल्कनी में आयी तो हैरान थी क्यों की वहाँ पर उसका प्रिय कुंद का पौधा वहाँ नहीं था ,वह चिल्लाती है माँ ओ माँ मेरा कुंद का पौधा कहाँ है ? क्या वो गमला आपने कही और रख दिया | नही रे मुझे फ़ालतू के कामों की आदत नहीं है जा नीचे देख डीजे पर डान्स तो नहीं कर रहा मोहल्ले में आज पार्टी है और हँस पड़ती है |गीतिका उदास हो जाती है |
एक शाम पडोस के शर्मा जी के घर भजन संध्या थी गीतिका भी वहाँ गयी उसने वहाँ अपना पौधा देखा जिसकी पत्तियाँ पीली पड़गयी थी वह चिल्ला पड़ी कुंद मेरा कुंद , मेरा पौधा यह यहाँ कैसे आ गया ? मिसेज शर्मा ने विरोध किया और कहा यह मेरा पौधा है पर गीतिका अपनी बात पे अड़ी रही | गीतिका ने जोर से कहा मै सिद्ध कर सकती हूँ यह मेरा कुंद है |सभी हँस पडे एक स्वर में आवाज आयी क्या पौधा जवाब देगा | गीतिका ने विश्वास से हाँ में सर हिलाया और बोली पौधे को अंदर कमरे में लेचलिये |पौधे को अंदर रखा गया गीतिका ने कहा मेरा कुंद मेरा गाना सुन कर झूमने लगेगा सभी मुस्करारहे थे मानो कोई तमाशा देखने आये हों |
गीतिका ने मधुर आवाज में गाना शुरू किया देखते ही देखते पौधा भी हिलने लगा मानो खुश होके नाच रहा हो |सभी आवाक थे |मिसेज शर्मा अपनी करनी पर शर्मशार थी |
गीतिका खुश थी की लोग उसे अब पागल नहीं कहेंगे और उसकी बात भी सुनेंगे |उसे अपनी बात कहने का मोका मिल गया उसने सभी को संबोधित कर के पौधों के संरक्षण की बात कही ,पर्यावरण को बचाने की बात कही |उसने कहा की इनमें भी जीवन है ,ये भी भावों को महसूस करते हैं |बेवजह इनका क्षरण करना अनुचित है इनका विशेष ख्याल रक्खे|ये हैं तो हम हैं |
मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”
(मौलिक)

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016