कविता

ये शब्द भी क्या चीज़ हैं

ये शब्द भी क्या चीज़ हैं
अपनी धुन में खेलते जा रहे हैं
मैं क्या लिखूँ, किस पर लिखूँ
लोग लिख चुके हैं, लिखते जा रहे हैं
शब्द वर्णमाला के वही हैं
अलग अलग रूप धारण कर
भावनाएँ दर्शा रहे हैं
कभी वीरता बघार रहे हैं
कभी भय से रिरिया रहे हैं
कभी चोट पहुँचा रहे हैं
कभी सहला रहे हैं
कभी विदाई को परिभाषित कर
आँखों में अश्रु ला रहे हैं
मैं क्या लिखूँ, किस पर लिखूँ
ये शब्द भी क्या चीज़ हैं
अपनी धुन में खेलते जा रहे हैं
लोग लिख चुके हैं, लिखते जा रहे हैं
शब्द वही हैं पर तेवर बदलते हैं
कभी प्रशंसा तो कभी
घृणा बन जाते हैं
यही शब्द किसी को
आग बबूला कर रहे हैं
तो किसी को
पानी-पानी कर रहे हैं
कभी रुदन करवा देते हैं तो कभी
स्मित मुस्कान ले आते हैं
मैं क्या लिखूँ, किस पर लिखूँ
ये शब्द भी क्या चीज़ हैं
अपनी धुन में खेलते जा रहे हैं
अरे ओ इंसान ज़रा संभल
इन शब्दों को सोच कर बोल
ये रिश्ते बनाते हैं तो
बिगाड़ते भी यही हैं
शब्दों की दुनिया निराली है
इस निरालेपन की बगिया में
तू शब्दों के गुलाब नहीं खिला सकता
तो कम से कम कांटे मत खिला
मैं क्या लिखूँ, किस पर लिखूँ
ये शब्द भी क्या चीज़ हैं
अपनी धुन में खेलते जा रहे हैं

सुदर्शन खन्ना

वर्ष 1956 के जून माह में इन्दौर; मध्य प्रदेश में मेरा जन्म हुआ । पाकिस्तान से विस्थापित मेरे स्वर्गवासी पिता श्री कृष्ण कुमार जी खन्ना सरकारी सेवा में कार्यरत थे । मेरी माँ श्रीमती राज रानी खन्ना आज लगभग 82 वर्ष की हैं । मेरे जन्म के बाद पिताजी ने सेवा निवृत्ति लेकर अपने अनुभव पर आधरित निर्णय लेकर ‘मुद्र कला मन्दिर’ संस्थान की स्थापना की जहाँ विद्यार्थियों को हिन्दी-अंग्रेज़ी में टंकण व शाॅर्टहॅण्ड की कला सिखाई जाने लगी । 1962 में दिल्ली स्थानांतरित होने पर मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा पिताजी के साथ कार्य में जुड़ गया । कार्य की प्रकृति के कारण अनगिनत विद्वतजनों के सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला । पिताजी ने कार्य में पारंगत होने के लिए कड़ाई से सिखाया जिसके लिए मैं आज भी नत-मस्तक हूँ । विद्वानों की पिताजी के साथ चर्चा होने से वैसी ही विचारधारा बनी । नवभारत टाइम्स में अनेक प्रबुद्धजनों के ब्लाॅग्स पढ़ता हूँ जिनसे प्रेरित होकर मैंने भी ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक ब्लाॅग आरंभ कर कुछ लिखने का विचार बनाया है । आशा करता हूँ मेरे सीमित शैक्षिक ज्ञान से अभिप्रेरित रचनाएँ 'जय विजय 'के सम्माननीय लेखकों व पाठकों को पसन्द आयेंगी । Mobile No.9811332632 (Delhi) Email: [email protected]

4 thoughts on “ये शब्द भी क्या चीज़ हैं

  • सुदर्शन खन्ना


    ​आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. एक शब्द बना औषधि दूसरा बना है घाव, क्या कहने. पुरानी कहावत है पहले तोलो फिर बोलो. शब्दों का आपने ख़ूबसूरत संसार है. हर भाषा में. चूँकि इनके अर्थ जोकि शब्द ही होते हैं अनेक बार गज़ब ढा जाते हैं. द्रौपदी के शब्दों ने महाभारत करवा दी थी. सड़कों पर रोड रेज में शब्द अपनी भूमिका निभाते हैं. शब्द ही स्नेह की बहार हैं. शब्द शब्द संभाल कर बोलिए शब्द के हाथ न पाँव, कभी लगें कोयल की कुहू कुहू तो कभी लगें काँव काँव।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछि रचना .सारे शब्द जुबां से ही निकलते हैं .इसी लिए तो अक्सर कहा जाता है कि जुबां संभाल कर रखना चाहिए . शब्द चाहे अछे हों या बुरे, बस एक दफा मुंह से निकले किसी का अच्छा भी कर जाते हैं और बुरा भी .

    • सुदर्शन खन्ना

      आदरणीय गुरमैल जी, सादर प्रणाम. आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत आभार. शब्द ही शबद बने हैं, रच दिया है इतिहास, गुरुओं की वाणी का ह्रदय में हुआ है वास. बहुत सुन्दर बात कही है आपने, ज़ुबां संभाल कर बोलो, शब्द किसी का अच्छा और किसी का बुरा भी कर जाते हैं. शब्दों के महिमा अपरम्पार.

  • लीला तिवानी

    शब्द-शब्द संभाल कर बोलिए,
    शब्द के हाथ न पांव,
    एक शब्द में है औषधि,
    एक शब्द में है घाव.

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