कहानी

शिक्षा का महत्व

शिक्षा का महत्व

सन्तोष ! मीना और अपने बच्चों के साथ खुश था किसी चीज की कोई कमीं नहीं थी |सन्तोष को जितना पढाई-लिखाई से प्यार था ,उसके बच्चे शिक्षा के प्रति उतने ही उदासीन थे इसलिये उसे अपने दोनों बच्चों के भविश्य की चिंता बनी रहतीथी |

मीना पढने को कहती तो दोनो का एक ही जवाब ‘पापा औफिसर हैं हमलोगों की नौकरी तो लग ही जाएगी’ | तुम चिंता मत करो |
मीना रोज की तरह फिर से……
नाश्ता हो गया चलो कुछ देर पढो जाकर परीक्षा निकट है | एक स्वर में आवाज आती है ……कहा न तुम परेशान मत हो सबहो जाएगा |

मीना सुन रहे हो अपने लाड़लों की | राजू का इस वर्ष बोर्ड है ऐसा ही रहा तो क्या होगा ????? आप समझाते क्यों नहीं ? दिन भर टी वी देखते रहते हैं दोनो |

संतोष दोनो को आवाज देता है |राजू ,रेखा इधर आओ ! आपने बुलाया पापा ! हाँss चलो बैठो आज छुट्टी का सदूपयोग करते हैं और एक कहानी सुनाते हैं |
संतोष दोनो को देखते- देखते अपने बचपन में खो जाता है और कहने लगता है —

बरसो पहले एक लड़का था जिसके जन्म के कुछ महीने बाद ही माँ का स्वर्गवास हो गया था | पिता के स्नेह में माँ के लाड़ की अनुभूति करता हुआ वह बड़ा हो रहा था |अभी पांचवी कक्षा में पहुँचा ही था कि पिता को भी ईश्वर ने अपने पास बुला लिया |एक बार फ़िर उसके ऊपर गाज गिर पड़ी थी|
जीवनआग का दरिया बन कर रह गया था |घर में चाचा ताऊ के होते हुए भी उसके सर पर प्यार भरा हाँथ रखने वाला कोई नहीं था | माँ बाप का साया ना हो तो कोई शज़र छाँव नही देता ये कहावत सच हो गयी थी| वह घर में सभी से मिन्नते करने लगा की उसे स्कूल जाने दिया जाये वह घर का सारा काम व सभी की सेवा करेगा |
जीवन के अथाह कस्टों को सह कर भी उसने शिक्षा से मुँह नहीं मोड़ा,अन्तत: ईश्वर का आशीष मिला और उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सका सी .ए. की परीक्षा प्रथम स्रेणी में उत्तीर्ण कर उसने विद्द्यालय और माता पिता दोनो का नाम रोशन किया | आज वह शिक्षा रूपी नौका में सवार हो कर्म की पतवार के सहारे जीवन रूपी भीषण आग का दरिया पार कर चुका था | ये कोई और नहीं मेरे बच्चों स्वयं मैं था | दोनो हतप्रभ से पिता को देख रहे थे | मीना की आंखे छलक पड़ी | सन्तोष ने बच्चों की ओर देखते हुए पूछा क्या अब भी तुम दोनो पढने से जी चुराओगे ?
नहीं पापा ! एक स्वर में दोनों बोल पड़ते हैं |
©मंजूषा श्रीवास्त्व”मृदुल”
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016