मंजिले
रात परेशां है रात भर,
उजाले का है इसे भी
इंतेज़ार रात भर ।
बहुत थका हुआ है सूरज,
एक रात की नींद लेना है,
सूरज को भी रात भर ।
दूसरे से कर रहा है हर कोई
ना जाने ये कैसी उम्मीद
वही दूसरा भी अपने गमो
से परेशान है उम्र भर ।
समंदर पानी से लबालब भरा है
सब तरफ,फिर भी ना जाने इसे
किस बात की प्यास है उम्र भर।
यूँ ही कटता है सुख दुख में
जीवन का हर एक का ये सफर
और उसपे ये खुशफहमी की
बटोर लेगा सारी खुशियां अपने
लिए और दुखो से दूर रहेगा उम्र भर।
किसी सड़क का एक किनारा खत्म
हुआ है जहाँ वो उसने अपनी मंजिल
समझ लिया ओर उस मंजिल ने फिर
से किया नए किनारे के लिए एक सफर
बस यूँ ही चलता रहा किनारों का
मंजिल पाने का ये सफर यूँ ही उम्र भर।
साथ कोई आये या ना आये,चलना तो
होगा , मंजिल मिले ना मिले,पर घर से
मंजिल के लिए तो निकलना तो होगा,
मंजिल तलाशता तू चलता चल उम्र भर।