गीत – नीली खाल
रंग बदलते चेहरे देखे, और बदलती देखी चाल
नाखूनों में लहू लगा है, पर सबकी नीली है खाल।
कहीं गरीबी की बिसात पर, प्यादे दौड़ लगाते हैं
राष्ट्रवाद की बलिवेदी पर, शेर कहीं कट जाते हैं
एक घाट पर डँटे हुए हैं- पंडित, मुल्ला और दलाल
रंग बदलते चेहरे देखे और बदलती देखी चाल।
ये सपनों का चक्रव्यूह रच, अपना जाल बिछाते हैं
शातिर शकुनि के झाँसों में, अभिमन्यु फँस जाते हैं
कौओं की टोली में हुआ बहुत बुरा हंसों का हाल
रंग बदलते चेहरे देखे और बदलती देखी चाल।
— शरद सुनेरी