लुप्त होती पीढ़ी को नमन
लुप्त होती पीढ़ी को मेरा नमन
चमकाया महकाया अपना वतन।
बनाकर घरौंदे मिट्टी के
सुनी नानी की कहानियाँ,
सदी इक्कीसवीं में भी
न खोईं अपनी निशानियां।
जिनकी महक से महकता वतन
लुप्त होती पीढ़ी को मेरा नमन
रहकर तालाब के कीचड़ में
कमल से खिले मुस्कुराए,
संघर्ष झेल बने खरा सोना
आभूषण बन खिलखिलाए।
जिनकी चमक से चमकता चमन
लुप्त होती पीढ़ी को मेरा नमन।
चांदनी के धुंधलके में
खत को लिखा खत को पढ़ा,
जीवन से महापुरुषों के
विवेकी हो चरित्र गड़ा।
जिनकी आभा से दमकता वतन
लुप्त होती पीढ़ी को मेरा नमन।
महसूस कर अपनो का प्यार
निभाए रिश्ते बांटी मिठास,
थे खुशनसीब न रहे अकेले
हुए न जीवन में कभी निराश।
जिनकी ऊर्जा से दहकता दुश्मन
लुप्त होती पीढ़ी को मेरा नमन।
— निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम