गीतिका छंद
भारती की आन पे वो, आज मिटने को चला
हाथ में शमशीर लेके, काटने रिपु का गला
पूजता है वो सदा ही, कालिका ही मात को
आरती गाता रहा है, वो यहाँ दिन रात को
खोजता हूँ आज भी मैं, जंगलों की राह में
मैं न पाऊँगा उसे सुन, इश्क की हर चाह में
है भरोसा बोल तू भी, प्यार मुझको है मिले
आज भी वो भूलता ना, है पुराने ही गिले
पूछता है आज भी वो, शक्स मेरा ही पता
है हवाओं है फिजाओं, हो पता हो तो बता
जिंदगी भी हो गयी है, रंग से बेरंग सी
छिड़ गयी है आपसी अब,एक कोई जंग सी
प्यार को ही प्यार से ही, जीत लेगा तू यहाँ
साथ तेरा जो मिले तो, जीत लूगां मैं जहां
कर भरोसा तू सदा ही, प्यार की ही जीत हो
साथ हूँ मैं कांपता क्यों, बोल मेरे मीत हो
जी रहा हूँ हार के भी, आज भी मैं क्यो भला
सोचता हूँ मैं उसी ने, क्यो सदा ही हूँ छला
प्रश्न है एक मन में ही, आज तुझसे पूछता
किन गुनाहों की सजा है, रंज ये भी पूछता
तू शिवानी बन सदा ही, मैं बनूं तेरा शिवा
आश हो कैसे यहाँ भी, जीत की तेरे सिवा
आज भी है याद हमको, साथ जो है हम पढें
साथ खेले साथ ही हम, साथ आगे ही बढे
जी रही हूँ मैं सखी सुन, यार की अब याद में
मांगती हूँ मैं खुदा से, आज भी फरियाद में
है विरह की वेदना जो, रात को सोती नहीं
थक गयी आंखे यहां जो, याद में रोती नहीं
संग लम्हें जो जिये थे, याद है वो आज भी
बन चुका हूँ आज कैदी, मैं भरू परवाज़ भी
ढल रही है शाम यारा, हो रहा गुमनाम मैं
खो चुका हूँ मैं तुझे अब, क्यो हुआ बदनाम मैं
वो कली मेरे चमन की, जान थी पहचान थी
ले गया है यार कोई, जिंदगी परवान की
जो महकती औ खिली थी, आज वो खामोश है
है शिकायत भी खुदा से, नैन में भी रोष है
पी गया वो विष सदा ही, शिव जटाधारी यहाँ
तांडव करे भैरव बनें वो, नीलकंठेस्वर यहाँ
भक्त ईश महेश देवा, जगत तारणहार भी
अंत वो प्रारंभ भी है, जगत पालनहार भी
सत्य में भी सत्य है वो, वो खुद महाकाल है
देख यम भी कांपता है, रूप वो विकराल है
वक्त की वो चाल को भी, हाल ही वो थाम दें
भक्त के वश में हुए तो, शिव अपना नाम दें
मन समंदर है गुरू का , हृदय में अनुराग है
भानु सा तेज मुख पर है, भाव में भी राग है
जोड़ कर हाथ समुख खड़ा, वंदन करू मैं सदा
पा रहा आशीष मैं भी, है गुरू मेरे खुदा
— कवि भानु शर्मा रंज