पद्य साहित्यभजन/भावगीत

हे माँ प्रचंड रूप धर आ जाओ

हे माँ धरती पर प्रचंड रूप धर आ जाओ।
हो रहा अत्याचार मासूमों पर माँ,
बिलख रही किलकारी है माँ।

ले कर के खड्ग और त्रिशूल माँ,
दुष्टों के शीश भेट चढ़ा जाओ।

हे माँ प्रचंड रूप धर आ जाओ।।

तब कोख में मरती थी कन्या
अब तो जन्म के बाद उजड़ती है ।

पैदा करने वाला बन गया भक्षक
किस से अब रक्षा की गुहार करें माँ।

ले तलवार इन पिता रूपी दानव का सर धड़ से अलग कर जाओ माँ।
हे माँ प्रचंड रूप धर आ जाओ।

भाई बहन की आबरू लुटे,कैसा कलयुग आया है।
पिता बन गया अब भक्षक देख, माँ का दिल घबराया है।

कोई जगह बची नही अब जहाँ बेटी हो सुरक्षित

नन्ही कन्या रूप देवी का फिर क्यों बेबस होती है?
नन्हे नन्हे से कोमल बदन पर क्यों जख्मों को सहती है ?
अब धरती पर आ जाओ माँ
हे माँ प्रचंड रूप धर आ जाओ।।

संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल [email protected]