गीत/नवगीत

…और तुम हो

भोर की पहली किरण है , और तुम हो
प्रेम से भीगे ये क्षण हैं , और तुम हो ।।

नवकुसुम कलिकाएँ लता पर डोलते से
भोर  के  आँगन  में  सुरभि  घोलते   से
कूजते  खगवृंद  प्यारे  झुरमुटों  में
रात  के  सपनों  की  गिरहा  खोलते  से

हरसुँ दमकते ओंसकण हैं ,और तुम हो
प्रेम  से भीगे ये क्षण हैं , और तुम हो ।।

मखमली  सी धुँध छाई है क्षितिज पर
धूप  है  आई ;  लजाई  सी  देहरी  पर
ठंडी हवाओं की मधु स्वरलहरियों संग
गा  रहे  मकरन्द  पल्लव  मञ्जरी  पर

प्रकृति हर कण मगन है  , और तुम हो
प्रेम से भीगे  ये क्षण हैं , और तुम हो ।।

समर नाथ मिश्र