कविता

मधु स्मृति

बीते समय की सुख कड़ियाँ
चलचित्र सी  चित मे चलती है
अब दृगजल बन वह मधु स्मृति
अनायास नयन से ढलती है

है स्मरण मुझे वह सांझ पहर
मदिर मधुर अस्ताचल था
मेरी उस्मित उत्सित बाँहों मे
तेरे निश्छल नेह का आंचल था

मेरे काँधों की परिधि मे
तेरे केशु लहराते थे
मेरी उंगली के रागों पर
तेरे झुमके बल खाते थे

तेरी नथ मेरे गालों पर
हल्की सी चुभन लगाती थी
मैं रोम रोम पुलकित होता
तुम मंद मंद मुसकाती थी

ढ़लती किरणों के धागों में
हमने मयन पिरोए थे
दो नयन युग्म ने मेघों पर
धरती के स्वप्न सजोए थे

पलकों के बंद झरोखों में वह
सांध्य-दीप सी जलती है
अब दृगजल बन वह ‘मधु स्मृति’
अनायास नयन से ढलती है

समर नाथ मिश्र