ग़ज़ल
हार हो या जीत अब हम चल पड़े तो चल पड़े।
जोश अब होगा नहीं कम चल पड़े तो चल पड़े।
मुश्किलों से हारना सीखा नहीं मैंने कभी,
आँख चाहे आज हो नम चल पड़े तो चल पड़े।
जब इरादा कर लिया तो रुक नहीं सकते क़दम,
अब खुशी चाहे मिलें ग़म चल पड़े तो चल पड़े।
ये सफर अब खत्म होगा मंज़िलों के पार जा,
अब सवेरा हो कि हो तम चल पडे तो चल पडे़।
ज़ुल्म करले खोलकर दिल येज़माना अब हमीद,
अब नहीं सकते कदम थम चलपड़े तो चल पड़े।
— हमीद कानपुरी