दिलखुश जुगलबंदी- 11
आओ मिलकर रच दें नया इतिहास
खिल उठी है जुगलबंदी की बगिया,
रंग दिखने लगे हैं बढ़िया बढ़िया,
बहुरंगी का मुकाबला है सतरंगी से,
शब्द प्रणय कर रहे भावनाओं से,
कलम गुलाब की भी बनाएगी इतिहास,
करके जुगलबंदी हर पुष्प के साथ,
यूँ तो कलम गुलाब की है खिलती आयी,
पर उस पर भी जुगलबंदी की खुमारी है छाई,
देखिये अब खूबसूरत गुलाब को खिलते,
एक नए इतिहास को सृजित होते.
यह नवल इतिहास ही नया जोश दिलाएगा,
लोकतंत्र कैसा होना चाहिए, हमको बतलाएगा,
लोकतंत्र में नेता-अभिनेता नहीं, अच्छे इंसानों की जरूरत है,
अच्छा इंसान ही देश को आगे बढ़ाएगा.
लोकतंत्र में हमें चाहिएं,
ऐसे ईमानदार लोग,
जो देश के लिये जिएं.
देश के लिये मरें,
ऐसे महानुभाव.
जो कर्मठ भी हों और होशियार भी,
सच बोलने से न डरें न ही सहमें,
करें डटकर मुकाबला.
चारों ओर हो जिनका गौरवगान
और विद्वता का बोलबाला.
बस ऐसा संभव हो पाए तो क्या बात है!
सब कहेंगे, हुई लोकतंत्र से सच्ची मुलाकात है,
यह सब जनता के किए से ही हो सकता है,
जनता का वोट सच्चे लोगों को मिल सकता है,
पहले हम अपने मन-मस्तिष्क के कपाट खोलें,
प्रत्याशियों के बोलों को तोलें,
उनकी करनियों को टटोलें,
जिनके बोल और कर्म सच्चे-सकारात्मक हों, उनको वोट दें,
जिनके बोल और कर्म ही विवादास्पद हों, उन्हें हार की चोट दें.
आओ मिल रचें नया इतिहास
मन में जोश का हो अहसास
फिर आई है हम पर जिम्मेदारी
कर्त्तव्य निभाने की है अब हमारी बारी
देश दौड़ रहा है सरपट
लोकतंत्र ले रहा है करवट
सच्चाई संग दौड़ रही
देखो इंसानियत है छाई
बदल रहा है देश मेरा
यह नवयुग का भारत है
सच्चाई की लिये घ्वजाएं
नयी पीढ़ी है आगे आई
सुन लो बंधु, सुन लो भाई
मत का जैसे हम करेंगे उपयोग
वैसे ही करना होगा उपभोग
आओ भारतीय संस्कृति को चमका दें
देश की ध्वजा ऊंची फहरा दें बिंदास.
आओ मिलकर रच दें नया इतिहास.
दिलखुश जुगलबंदी-10 के कामेंट्स में सुदर्शन खन्ना, चंचल जैन और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.
लीला बहन , यह ट्रिपल जुगलबंदी बहुत अछि लगी . बगैर भेदभाव, बगैर किसी को दोष दिए और बगैर किसी गाली गलोच से चुनाव सम्पूर्ण हो जाएँ तो देश का भला ही होगा . अछे लोगों को ही चुनना चाहिए और लूट घसूट म्नोविरती वाले लोगों की ओर से दरकिनार ही कर लेना चाहिए
चुनाव प्रचार अवश्य कीजिए,
आपकी पार्टी क्या-क्या करेगी, यह व्यक्त कीजिए,
चुनाव प्रचार-मंच गाली-गलौज का मंच नहीं है,
अपनी असभ्यता दिखाने का मंच नहीं है,
एक-दूसरे को नीचा दिखाने का मंच नहीं है,
जनता को अपना बनाने का मंच है,
लोकतंत्र की गरिमा बढ़ाने का मंच है.