रामराज्य
जिधर देखो उधर ही आग लगी है ,
अपने -अपने स्वार्थ की सबको पड़ी है ।
आओ मिलकर हम स्वर साधते हैं ,
नव निर्माण की कड़ी बाँधते हैं ।
देश के गद्दारों को हम धूल चटाएंगें ,
घर के भेदियों को ,सरे आम नचाएंगें।
तो आओ सब मिलकर शपथ हम लेते हैं,
स्वार्थ की गठरी को हाथ न लगायेंगें
वतन ही है माँ-बाप, वतन ही प्राण है,
वतन ही है आन बान, वतन ही शान है।
राम के भेष में रावण को पहचानेंगें,
नासूर आतंकवाद का जड़ से उखाड़ेंगें।
तो होगा फिर रामराज्य, हर पुरुष राम होगा,
हर बाला सीता होगी, दैविक काम होगा ।
रावणों का अंत होगा, राम की जयकार होगी,
स्वर्णिम भारत होगा, भारत की जयकार होगी।
– – निशा नंदिनी गुप्ता