कविता
मैं एक ऐसी रात हूँ
जिसकी कोई भोर नहीं
एक लंबी ख़ामोशी हूँ
जिसमें कोई शोर नहीं
सिमटी हूँ ख़ुद में ही मैं
कोई मेरे चारों ओर नहीं
मैं एक चिर बिंदु हूँ
कोई मेरा ओर-छोर नहीं
माथे पे तनाव की रेख हूँ
होंठों पे फैला विभोर नहीं
सीधी सरल मनस्विनी, कोई
आडम्बर घनघोर नहीं
— प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’