ग़ज़ल
*ग़ज़ल*
जुबां से कहूं तभी समझोगे तुम
इतने भी नादां तो नहीं होगे तुम
अपना दिल देना चाहते हो मुझे
मतलब मेरी जान ले जाओगे तुम
भड़क उठी जो चिंगारी मोहब्बत की
फिर वो आग ना बुझा पाओगे तुम
इश्क में सुकूं तभी मिलेगा जब
जिस्म से रूह में समाओगे तुम
प्यार करना कोई वादा न करना
वरना बेवफा कहलाओगे तुम
अब तो कहते हैं दुश्मन भी मेरे
‘कौशिक’ बहुत याद आओगे तुम
:- आलोक कौशिक