मन का हौसला
जिसके मन में हो हौसला,
डरे न वह देखकर फासला।
चाहे जितनी दूर हो मंजिल,
कर ही लेता है वह हासिल।
चाहे चंदा न चमके नभ में,
तमस पसरा हो चाहे पथ में।
निडर कभी उससे डरता नहीं,
दुख से कभी आहे भरता नहीं।
चाहे पग में उसके चुभे कांटे,
दर्द फिर भी न किसी से बांटे।
रक्तरंजित पग है आगे बढ़ाता,
बस निरंतर वह चलता जाता।
हो नैनों में चाहे अश्रु धार,
फिर भी न वह माने हार।
दम लेता वह पाकर विजय,
हो जाता वह जग में अजय।
विघ्नों को बना लेता मित्र,
ऐसा अद्भुत उसका चरित्र,
प्रभाकर सी मुख पर कांति,
रहती नहीं कोई भूल, भ्रांति।
समय कहे करके प्रणाम,
मानव तू है बड़ा महान,
तेरे आगे समय भी झुकता,
कठिन समय में भी न रूकता।
हार कहे मैं तो हारी,
जाऊं तूझ पर बलिहारी,
देख तुझमें इतनी जीवटता,
आ जाती मुझ में भी दृढ़ता।
देख तुझमें असीम साहस,
प्रेरित हो उठे जनमानस,
निरंतर ऐसे कर्म करता जा,
मनचाहा मंजिल पाता जा।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।