भेड़तंत्र
प्राचीनकाल में चंपतपुर नामक एक राज्य था I जनता की मांग पर वहाँ भेड़तंत्र की स्थापना की गई I भेड़तंत्र अर्थात भेड़ों के लिए भेड़ियानुमा भेड़ों द्वारा संचालित ऐसी शासन- व्यवस्था जिसे भीड़तंत्र, वोटतंत्र और भेड़ियातंत्र भी कहा जाता है I उस तंत्र में वोट की नदी को पारकर लंपट, लफंगा, अपराधी, भ्रष्ट और दिवालिया व्यक्ति भी भेड़ों का विधाता और विधायक बन सकता था I राज्य का नाम चंपतपुर था, अतः वहां के राजा – प्रजा चंपतीय गुणों से लैस थे I लोग देखते- देखते सरकारी धन, योजना या संपत्ति को लेकर चंपत हो जाते थे I चंपतपुर अनेक वर्षों तक गुलाम रहा था I भेड़ों ने आज़ादी के लिए सैकड़ों वर्ष तक संघर्ष किया लेकिन आज़ादी के बाद भेड़ियानुमा भेड़ें शासन करने लगीं I इस तंत्र की माया ही ऐसी थी कि कुछ समय तक सत्ता में रहने के बाद भेड़ भी भेड़िया बन जाती I जो इस तंत्र का हिस्सा बनता उसमें भेड़िया का गुण आ जाता I गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलानेवाली भेड़ों की गरीबी तो मिट जाती पर आम भेड़ें गरीबी में जन्म लेतीं, गरीबी में जीवन व्यतीत करतीं और गरीबी में ही ‘राम नाम सत्य’ कह देतीं I इस राज्य की भेड़ें नकल करने में बहुत माहिर थीं I एक भेड़ कहती ‘मी’ तो सभी भेड़ें ‘मी मी’ कहने लगतीं, एक कहती ‘वाह’ तो सभी भेड़ें ‘वाह वाह’ करने लगतीं I एक खड़ी होती तो सभी खड़ी हो जातीं, एक बैठती तो सभी बैठ जातीं I कौन अपना दिमाग लगाए I इस राज्य के भेड़ों ने तर्क और विवेक को ताले में बंद कर उसकी चाभी समुद्र में फेंक दी थी I एक भेड़ गड्ढे में गिरती तो सभी उसका अनुकरण करतीं I कुछ भेड़ें भेड़िया बन गई थीं जो अक्सर अपने ही भाई – बंधुओं का शिकार करती रहती थीं I भेड़तंत्र के तीन अंग थे – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका I कहने के लिए यहाँ एक संविधान भी था लेकिन तीनों अंगों के प्रभावशाली भेड़ियानुमा भेड़ें अपनी- अपनी सुविधा के अनुसार उस संविधान से अपनी कमीज बनवाती अथवा अपना कुर्ता सिलवाती थीं I संविधान में अनेक छिद्र थे जिस छिद्र से हाथी निकल जाता पर मक्खी बेचारी फंस जाती I भेड़ों के कई रंग और कई रूप थे I कुछ भेड़ रूप बदलने में भी माहिर थी I कुछ भेड़ों को बुद्धिजीवी कहा जाता था I इनका रंग सफ़ेद था I सफेदपोश भेड़ों ने धीरे- धीरे तीनों अंगो पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था I बुद्धिजीवी भेड़ें अपने शब्द – कौशल और चातुर्य से सत्ता प्रतिष्ठानों में विराजमान हो गई थीं I धूर्तता और पाखंड इनके चरित्र का अविभाज्य अंग था I बुद्धिजीवी भेड़ों में आपस में अद्भुत एकता थी I ये ‘तुम मुझे उठाओ, मैं तुझे उठाऊं’ की नीति में विश्वास करती थीं I कुछ भेड़ें लाल रंग की थीं I ये खुद को साम्यवादी, जनवादी अथवा प्रगतिशील कहती थीं, लेकिन आचरण में समानता, बंधुत्व और स्वतंत्रता से इनका छत्तीस का संबंध था I ये लाल भेड़ें परम स्वार्थी, गरीब विरोधी और दकियानूस थीं I यह एक दुर्लभ प्रजाति थी क्योंकि इनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही थी I ‘झंडू बाम पार्टी’ के नेताओं के साथ इन कामनिष्ठ लाल भेड़ों का गुप्त स्नेह बंधन था I लाल भेड़ें झंडू बाम पार्टी के कामुक नेताओं के साथ अक्सर चोरी –छिपे सुहागरात मनाया करती थीं I लाल भेड़ें रात में सुहागरात मनातीं और दिन के उजाले में ‘झंडू बाम पार्टी मुर्दाबाद के नारे लगतीं I दिन में नारे लगाना और रात में अपना नाड़ा खोल देना इनके चरित्र की उदात्तता थी I विरोध का यह एक सर्वहारावादी तरीका था I लाल भेड़ों ने चतुराईपूर्वक चंपतपुर के इतिहास को गड्डमड्ड कर उसे झालमुरी बना दिया था I ये भेड़ें शब्द क्रीड़ा में अत्यंत माहिर थीं I ये पड़ोसी मुल्क चांगचुंगपुर से खाद, पानी, रस, गंध, संस्कार उधार लेतीं थीं लेकिन अपने मुल्क चम्पतपुर की संस्कृति और संस्कारों को हमेशा कोसती रहतीं और उसे हेय साबित करने का प्रयास करती रहती थीं I कुछ भेड़ें लाल टोपी पहनती थीं जो खुद को समाजवादी कहती थीं I इनके समाजवाद का अधोवस्त्र अपनी जाति के आँगन में सूखता था और इनके लोहियावाद की चोली भाई – भतीजे – भार्या की अलगनी पर टंगती थी I इत्र छिड़कने के बावजूद समाजवादी टोपी से धनशोधन, स्वार्थ और रिश्वतखोरी की बदबू निरंतर आती रहती थी I इन भेड़ों का समाजवाद जातिवाद की जूती पहनकर परिवारवाद का पद प्रक्षालन करता, भाई- भतीजावाद के तलवे चाटता तथा अपराध शास्त्र का नया अध्याय लिखता था I चंपतपुर में हरी भेड़ों की अपनी एक विशिष्ट पहचान थी I दुनिया में बुर्कानिस्तान की स्थापना करना हरी भेड़ों का परम एजेंडा था I इनका नारा था – दुनिया के बुर्काधारियों एक हों I हरी भेड़ों की अभिलाषा थी कि चंपतपुर की सभी भेड़ें बुर्का धारण करें, दिन में पाँच बार ‘बुर्का उठाओ, बुर्का गिराओ’ का अभिनय करें और अपनी जनसंख्या बढ़ाकर एक वृहत बुर्कानिस्तान की स्थापना करें I ये चंपतपुर के परिवार नियोजन कार्यक्रम को उल्टा लटकाकर ‘हम दो हमारे दो’ की जगह ‘हम दो हमारे चौदह’ की योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए अथक परिश्रम करती थीं I 24 X 7 बच्चा उत्पादन कार्यक्रम चालू था I इस राज्य की भेड़ें परम आज़ाद थीं I सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद अचानक आज़ादी मिलने से भेड़ें अनुशासनहीन, उद्दंड और उच्छृंखल हो गई थीं I वे डंडे की भाषा समझती थीं I नियमों को तोडना – मरोड़ना इन भेड़ों का मूल चरित्र था I भेड़ें आज़ादी का भरपूर मजा लेती थीं I सड़क के बीचोबीच मंदिर, मस्जिद और मजार का निर्माण कर आज़ादी का सम्पूर्ण आनंद लिया जाता I चंपतपुर एक सेकुलर राज्य था, अतः धर्म के नाम पर सब कुछ करने की आज़ादी थी I रेलवे लाइन पर बाज़ार लगता, राष्ट्रीय राजमार्ग पर मेला आयोजित होता, सड़क पर नमाज अदा की जाती और पार्क में बड़ी – बड़ी दुकानें सज जातीं I बड़ा ही प्रीतिकर माहौल था, सर्वत्र सुख – शांति थी, कोई रोक – टोक नहीं, पूरी आज़ादी थी – परम स्वतंत्र कोऊ सिर पर नाहीं I चंपतपुर एक मुक्त राज्य था I ईमानदारी से मुक्त, नैतिकता से मुक्त, अनुशासन से मुक्त I कोई अवरोध नहीं, कोई बंधन नहीं I चंपतपुर की सबसे पुरानी पार्टी ‘झंडू बाम पार्टी’ ने यहाँ कई दशकों तक शासन किया था I इस पार्टी की भेड़ों ने अपनी दलाली कला से खूब धन अर्जित किया था I चम्पतपुर में दलाली ने उद्योग का दर्जा प्राप्त कर लिया था I जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में आनेवाले झंझट- झमेलों और अवरोधों को दलाल ही दूर करते थे I दलाल चंपतपुर की जनता के पथ प्रदर्शक थे I इस राज्य का घोष वाक्य था – “यत्र दलाल: पूज्यन्ते रमंते तत्र देवताः” I झंडू बाम पार्टी ने दलाली कला को खूब पल्लवित – पोषित किया था I अतः चंपतपुर में दलाली एक विशिष्ट विधा के रूप में प्रतिस्थापित हो गई थी I झंडू बाम पार्टी के समर्थक चंपतपुर के मीडिया, शासन, न्यायपालिका में पर्याप्त संख्या में मौजूद थे I झंडू बाम पार्टी के शासनकाल में जज बनना सबसे आसान काम था I इस पार्टी के एक टकले नेता को जज बनाने में महारत हासिल था I वे जज बनाने में मादा भेड़ों को प्राथमिकता देते थे I वस्त्र उतारवादवाद के प्रति समर्पित और टकले नेता के लिए अखंड निष्ठा व अनुराग व्यक्त करनेवली मादा भेड़ें आसानी से जज की कुर्सी प्राप्त कर सकती थीं I नर भेड़ मुद्रा देवी के पुण्य प्रताप से टकले नेता को प्रसन्न कर जज के पद को सुशोभित करने के योग्य बन सकते थे I चंपतपुर राज्य की न्यायिक व्यवस्था निराली थी I विश्व में किसी अन्य देश में ऐसी निराली न्याय व्यवस्था नहीं थी I चम्पतपुर में भैंस वही ले जाता था जिसके हाथ में लाठी होती थी, दुल्हन वही ले जाता था जिसके हाथ में डोली होती थी, खेत गधा खाता था पर मार बेचारे जुलाहे को पड़ती थी I सच्चाई से अधिक गवाह की कीमत थी और गवाह से अधिक मुद्रा देवी का पुण्य -प्रताप था I एक बार तो न्यायालय परिसर में एक अनहोनी घटना हो गई I जज के सामने ही एक अपराधी ने वकील को गोली मार दी I वकील साहब अपराधी से कुछ सवाल- जवाब कर रहे थे I उन्होंने कठघरे में खड़े अपराधी से कुछ असहज सवाल पूछ दिए I सवाल उसकी पत्नी के चरित्र से संबंधित था I क्रोध में आकर अपराधी ने वकील साहब को गोली मार दी I अपराधी का शहर में बड़ा आतंक था I जिस जज के सामने वकील साहब को गोली मारी गई थी उन्होंने ही गवाह के अभाव में अपराधी को बाइज्जत बरी कर दिया I न्यायपालिका में पूर्ण भाईचारा था I न्यायपालिका के प्रवेश द्वार पर लिखा था “यहाँ न्याय टके सेर बिकता है” I चंपतपुर के पचास परिवारों का राज्य की समस्त न्याय व्यवस्था पर एकाधिकार था I यहाँ न्यायमूर्तियों की बोली लगती, साधारण भेड़ – बकरी न्याय के लिए दर –दर भटकते पर अपराधियों के लिए न्यायालय के दरवाजे चौबीसों घंटे खुले रहते थे ‘अहर्निशं सेवामहे’ I “भाई भतीजा जज चयन समिति” द्वारा जजों का चयन किया जाता था I जजों की प्रथम और अंतिम योग्यता किसी जज का रिश्तेदार होना था I जज का साला या जज के साले का भतीजा या जज के भतीजे का जीजा या जज के मामा के जीजा का साला होना जज बनने की प्रथम और अंतिम योग्यता थी I चंपतपुर की विधायिका का कोई जवाब नहीं था I हजारों नियम, उपनियम, अधिनियम बने थे लेकिन मुद्रा देवी की कृपा से नियमों से बचने के हजारों रास्ते भी खुले थे I कुछ शातिर भेड़ तो नियम बनने के पहले ही उससे बचने का सरल और स्थायी मार्ग खोज लेते थे I