कुंडलिया
चैत्री नव रात्रि परम, परम मातु नवरूप।
एक्कम से नवमी सुदी, दर्शन दिव्य अनूप।।
दर्शन दिव्य अनूप, आरती संध्या पावन।
स्वागत पुष्प शृंगार, धार सर्वत्र सुहावन।।
कह गौतम कविराय, धर्म से कर नर मैत्री।
नव ऋतु का आगाज़, वर्ष नूतन शुभ चैत्री।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी