पीठ पीछे न कर कमाल साहिब…
पीठ पीछे न कर कमाल साहिब।
सामने आ के कर सवाल साहिब।।
कत्ल तुमने किये, चुप है दुनिया।
छेड़ पे मेरी, क्यों बवाल साहिब।।
तुमने हर बात पे दी शय, तब ही।
आज इतनी हुई मजाल साहिब।।
उसी रफ्तार से अब भी धड़के।
तुम्हारा आए जो ख्याल साहिब।।
दो निवालों की भूख थी, तुमने।
सोने चांदी से भरे थाल साहिब।।
तेरे भीतर ज़िन्दगी है ज़िंदा।
उसे बाहर ज़रा निकाल साहिब।।
झूठी तारीफों के पुल बंधते ही।
लो मैं फिर हुआ निहाल साहिब।।
कहानी पहले भी कई बार सुनी।
आज छोटा पड़ा रूमाल साहिब।।
अँधेरा है घना और रात लम्बी।
चाँद को जेब से निकाल साहिब।।
तन को रगड़ रगड़ के धोता है।
रूह एक बार तो खंगाल साहिब।।