कविता
हे भगवान
मेरी है बस इतनी सी फरियाद
चाहे जीवन छोटा ही देना
पर देना दीपक के जैसा
जैसे अँधेरी राहों को
रोशन कर देता है दीपक
मैं भी रोशन कर सकूँ
किसी के सुने जीवन को
फैला सकूँ घर घर में
माँ सरस्वती का दिया ज्ञान प्रकाश
उस दीपक के जैसा मेरे प्रभु
जो जलता है तुम्हारे चरणों में
ऐसा ही जीवन देना प्रभु
जिससे मैं मिलूँ जीवन में
निश्छल भाव से मिलूँ
बड़ी आत्मीयता से मिलूँ
तुम्हारे चरणों में जलने वाले दीपक के जैसे
हे मेरे प्रभु बड़ी पवित्रता से मिलूँ
द्वेष भावना ना हो मन में
बस इतना सा ही वरदान मांगती हूँ
जैसे दीपक नहीं देखता धर्म मजहब को
जलता है वो मजारों पर और मंदिरों में
वैसे ही ना देखूँ
मैं भी किसी के गुण दोष
बस फ़ैलाये जाऊँ मैं
तुम्हारे इस संसार में
ज्ञान का प्रकाश
तुम्हारी बेटी सुलक्षणा
और कुछ नहीं मांगती प्रभु
कबूल कर लेना बस यही फरियाद
बस कबूल कर लेना मेरे प्रभु
कबूल कर लेना
— डॉ सुलक्षणा अहलावत