गज़ल
भूलता भी नहीं हमको, हमारा भी नहीं होता
बिना उस शख्स के अपना गुज़ारा भी नहीं होता
क्यों उसका तसव्वुर ही करते हैं रात-दिन हम
दुश्मन-ए-जां किसीको इतना प्यारा भी नहीं होता
शब-ए-हिज्राँ में कोई राह दिखाई दे हमें कैसे
चाँद तो दूर आसमां में सितारा भी नहीं होता
भले कड़वी हैं यादें पर छोड़कर तो नहीं जातीं
मर ही जाते अगर इनका सहारा भी नहीं होता
मुझे अच्छा नहीं लगता मनाना रोज़ उसको पर
पास मेरे सिवा इसके कोई चारा भी नहीं होता
— भरत मल्होत्रा