पहली गलती
” मेम साहब.. हम पर झूठा इल्जाम मत लगाओ। आप की कान की बाली खो गई है तो मैं इसमें क्या करूं? मुझे क्यों चोर ठहरा रही हो? मैं आपके यहां चोरी करने नहीं आती, काम करने आती हूं पेट के खातिर। कितने सालों से आपके घर काम करती हूं मैं। कभी कोई चीज में हाथ लगाया है क्या मैंने, जो आज मुझे चोर ठहराने में आमादा हो गई। हम गरीब जरूर हैं परंतु चोर नहीं है। चोरी करके खाना होता तो आपके यहां बाई का काम नहीं करती। चोरी करती और ऐशो आराम की जिंदगी जीती।” आंखों में आंसू और गुस्सा लिए रजनी बाई ने कहा।
“चोरी करती तो पुलिस के हत्थे चढ़ जाती। चुपके से कोई चीज उठा ली तो किसी को पता भी नहीं चला। पुलिस से भी बच गई। ऊपर से आंख तरेरकर मुझसे झूठ बोल रही है।” शालिनी भी गुस्से में बोल पड़ी।
“ठीक है मेमसाहब! मैं जा रही हूं आगे से आप के यहां काम नहीं करूंगी। मुझे और भी घर मिल जाएंगे। आपके घर काम नहीं करूंगी तो भूखी नहीं मर जाऊंगी!” गुस्से में दनदनानाते हुए जाने लगी रजनी बाई।
“अरे रे रे इतना गुस्सा.. मैंने तो सिर्फ यह पूछा है कि मेरी कान की बाली गिर गई है, झाड़ू पोछा लगाते समय तुझे मिली है क्या? और इसमें इतना गुस्सा दिखा रही है। मैंने कब कहा कि तू ने चोरी की है।” थोड़ा शांत होते हुए शालिनी ने कहा।
“मुझे आपकी कान की बाली मिलती तो मैं आपको वापस नहीं करती क्या? आप इसलिए पूछ रही है.. आपको मैं चोर लग रही हूं! हम बाइयों की भी इज्जत होती है मेमसाहब। इस तरह बेइज्जत नहीं कर सकती आप हमें।” तेवर दिखाते हुए रजनी बाई ने कहा।
“अच्छा बाबा.. मुझसे गलती हो गई। मैंने तुझसे पूछ लिया.. पर सच कहती हूं मेरे मन में ऐसी कुछ गलत भावना नहीं थी। तू काम छोड़कर मत जा। तेरे बिना मेरे घर का काम कहां चलता है रजनी!”
अचानक रजनी बाई के साथ काम पर आई उसकी 15 वर्षीय बेटी कमली की मोबाइल की घंटी बज उठी।
रजनी बाई ने हैरानी से अपनी बेटी की ओर देखा और पूछा “तेरे पास मोबाइल कहां से आ गया। मैंने तो तुझे मोबाइल खरीद के नहीं दिया। किसने दी बता, किससे लिया मोबाइल तूने?”
मां की आंखों में गुस्सा देखकर कमली डर गई! डरते डरते ही कहा “वो.. मां मैंने खरीदी है।”
“तूने खरीदी है, रुपए कहां से मिले?”
“मां कुछ दिन पहले मुझे पड़ी हुई एक बाली मिली है सोने की। मैंने सुनार की दुकान में जाकर उसे बेच दिया और मोबाइल खरीद लिया। तुमसे कब से मोबाइल मांग रही थी, पर.. तुमने मुझे खरीद के नहीं दिया।”
“मोबाइल से क्या करेगी? किस से बात करेगी, अपने बॉयफ्रेंड से। बित्ती भर की लड़की है और इतना बड़ा जिगर। मेरी इज्जत का कचरा बनाती है!” एक चांटा पड़ा कमली के गाल पर।
“देखा रजनी.. मैंने कहा था न.. मेरी बाली गिर गई थी। अब तुझे विश्वास हो गया, मुझसे जबान लड़ा रही थी। अब तू ही बता मैं तेरी बेटी के साथ कैसा व्यवहार करूं? तेरी बेटी का यह पहला गलत कदम है अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा.. रोक ले इसे, वरना बाद में पछताएगी। केवल काम में उलझी रहती है, पहले अपनी बेटी का ध्यान तो रखा कर कि किस से बात करती है किस से नहीं करती है। पहले अपनी लड़की को अच्छी शिक्षा दें।”
“मेम साहब.. मुझे माफ कर दो। मेरी इज्जत का तो कचरा बना दिया इस लड़की ने। मुझे क्या पता था इतनी सी लड़की ऐसा गुल खिलाएगी। अब मैं घर जा कर इसे बताती हूं। हाथ-पांव बांध के इसकी पिटाई करूंगी।”
“ना रजनी ना.. लड़की है, उसकी पिटाई नहीं करना। अच्छे से प्यार से समझाना। बच्चों को प्यार से समझाना पड़ता है तब जाकर उन्हें बात समझ में आती है। पिटाई करेगी तो वह लड़की गुस्से में कुछ भी कर सकती है। काम के साथ साथ बच्चों का ध्यान रखना भी जरूरी है.. समझी?
“आप मोबाइल रख लो मैम साहब!”
“नहीं.. यह सोच ले कि मोबाइल मैंने तेरी बेटी को खरीद कर दी है। पहली बार उसने गलती की माफ कर देते हैं, पर.. दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए, ध्यान रहे!”
शालिनी की बातें सुनकर रजनी बाई की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे, हाथ जोड़कर खड़ी थी वह…!!
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।