कविता

दिलखुश जुगलबंदी-13

सबसे पहले हमें ही जागरुक होना होगा

जुगलबंदी के गुलशन में
रंगबिरंगे कुसुम खिलने लगे
सूर्य की सहस्र रश्मियां पंखुड़ियों को चूमने लगीं
ज्ञान का सौरभ फिज़ा में इत्र सा घुलने लगा
मंद मंद पवन संग
नन्हीं पत्तियां डोलने लगीं
सुबह सतरंगी कम्बल को छोड़
तपिश में बदलने लगी
पथरीली राह पर तन मन जलने लगे
वक़्त मुस्कुरा कर इम्तिहान लेने लगा!
मैंने भी कहकशों में आंसुओं को
पलकों में छुपा लिया!
जुगलबंदी बाकी थी समंदर में उठती सुनामी से
जुगलबंदी बाकी थी किनारों पे खड़े तमाशायियों से
जुगलबंदी बाकी थी धरती आसमां से
जुगलबंदी बाकी थी अपनों से, परायों से
जुगलबंदी बाकी है स्वप्न पूर्ति की जिजीविषा से
जुगलबंदी बाकी है हौसला अफजाई की मीनारों से!

हौसला अफजाई की मीनारों से,
जुगलबंदी पर रूप चढ़ जाता है,
बिलकुल वैसे ही
जैसे उबटन से दुल्हिन का रूप निखर जाता है
फिर उस रूप के हजारों दीवाने हो जाते हैं
वे शमा के परवाने हो जाते हैं
शमा आगे बढ़कर परवानों का स्वागत करती है
उसे क्या पता परवाने शमा के प्यार में
फ़ना होने को आते हैं.

प्यार की दिलखुश जुगलबंदी में
भूल न जाना उन बच्चों को
जिन्हें इंतज़ार है खिलौनों का
सीमा से पापा के लौटने का
प्यार की दिलखुश जुगलबंदी में
भूल न जाना उन बच्चों को….
जिन्हें इंतज़ार है मां के हाथ से बने खाने का
दफ़्तर से लौट ना पाई मां का
प्यार की दिलखुश जुगलबंदी में
भूल न जाना उन बच्चों को
जिन्हें इंतज़ार है न्याय के दुलार का
घाव सहला पाए उस मरहम का
प्यार की दिलखुश जुगलबंदी में
भूल न जाना उन बच्चों को…
जिन्हें इंतज़ार है सही पोषण का
चूहों से बचे-खुचे भोजन का
प्यार की दिलखुश जुगलबंदी में
भूल न जाना उन बच्चों को
जिन्हें इंतज़ार है सही शिक्षा का
भारत मां के तिरंगे आंचल का!

बच्चों को भुला पाना नामुमकिन है
बच्चे ही तो हमारे भविष्य के निर्माता हैं
अपने नाजुक कंधों पर देश का बोझ उठाकर
आगे बढ़ाने वाले विधाता हैं
इन निर्माताओं को
विधाताओं को
बहुत कुछ सिखलाना होगा
चुनाव में किसको, कैसे और क्यों
वोट देना है भी समझाना होगा
वोट देना आवश्यक है, यह राह दिखाने के लिए
हर चुनाव में हमको भी वोट डालने जाना होगा
हमारे एक वोट की कितनी कीमत है, यह भी बताना होगा
बूंद-बूंद से गागर तो क्या सागर भी लबालब हो सकता है,
उनको बतलाना होगा
सबसे पहले हमें ही जागरुक होना होगा
सबसे पहले हमें ही जागरुक होना होगा
सबसे पहले हमें ही जागरुक होना होगा.

 

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दिलखुश जुगलबंदी-10 के कामेंट्स में कुसुम सुराना और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी-13

  • लीला तिवानी

    किसी को भी जागरुक करने से पहले हमें ही जागरुक होना होगा. हम जागरुक रहेंगे तो दूसरों को जागरुक करने से उन पर असर होगा, हम वोट देने का संकल्प करेंगे तो और को भी इसके लिए मन से तैयार करना होगा. वोट देने वाले दिन भी जागरुकता का प्रचार किया जा सकता है. आप वोट देने का चिह्न दिखाकर औरों को भी वोट देने के लिए राजी कर सकते हैं. वोट सोच-समझकर सही प्रत्याशी को देना चाहिए, जो देश का हित कर सके, लोकतंत्र के साथ ईमानदारी बरत सके.

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