ग़ज़ल
चुनावी फित्न तो सोचा हुआ है
हमारे साथ तो धोखा हुआ है |
लुटेरा देश से भागा हुआ है
पहरे वाला अभी सोया हुआ है|
अभी कोई नहीं विश्वास लायक
ज़माना अब बुरा आया हुआ है |
अहंकार अब न करना, शत्रु शातिर
न सोचो शत्रु तो हारा हुआ है |
हजारों जिंदगी क्षण में मिटी है
तमाशा मौत का देखा हुआ है |
सुशिक्षित नम्र ज्ञानी कम नहीं है
धरा में रत्न मणि बिखरा हुआ है |
अनिच्छुक आलसी को भी उठाना
जगाना क्या जगा लेटा हुआ है |
किया है शत्रु से वो देश रक्षा
अदू को वीर ने रोका हुआ है |
अपरिचित था, नहीं थी जान पहचान
अनूठा गैर अब प्यारा हुआ है |
थी’ चाहत दिल में’ पर क्षमता कहाँ थी
युगों के बाद अब जाना हुआ है |
अभी भी कुछ बचा है क्या बखेड़ा ?
लड़ाई वोट का माना हुआ है |
बवंडर से सभी बर्बाद ‘काली’
नदी का पानी’ भी खारा हुआ है |
कालीपद ‘प्रसाद’