ग़ज़ल
मेरी आदत है मैं गिला – शिकवा नहीं रखता ।
असली और नकली कभी चेहरा नहीं रखता ।।
टूटा कई बार पर कभी बिखरा नहीं ।
सीने मे दिल, पत्थर का टुकडा नही रखता ।।
तोड कर मसल देते हैं जो कलियों को ।
ऐसे कातिल लोगों से मैं रिश्ता नहीं रखता ।।
किस्मत की मार का शिकवा क्यों करें ।
किसी की खुशी पे मैं पहरा नहीं रखता ।।
जमाने की तोहमतों का हिसाब क्या रखना ।
दुआओं के बदले दुआ की आशा नहीं रखता ।।
मेरी मौत के बारे पूछ रहा है लोगों से ।
जा रहे ज़नाजे पर”वो भरोसा नहीं रखता ।।
— सुदेश दीक्षित