गज़ल
बहुत खुश है दुश्मन-ए-जान मेरा
लेकर फिर से इम्तिहान मेरा
बच गए बस यादों के खंडहर
ढह गया इश्क का मकान मेरा
बहार तू साथ ले गया अपने
हुआ वीरान गुलिस्तान मेरा
तू भी औरों के जैसा ही निकला
गलत साबित हुआ इमकान मेरा
तू ही आगाज़ है अंजाम भी तू
तू ज़मीं तू ही आसमान मेरा
— भरत मल्होत्रा