मां
आज मां की विदाई थी अंतिम विदाई …पिछले कई वर्षों से मां बीमार थी । हम दोनों भाई-बहन महीने – 15 दिन के अंतराल पर घर आकर उन्हें देख जाते और साथ ही मां को जरूरत का सामान रख जाते। मां बहुत कमजोर हो गई थी, उनके जाने की भनक पहले ही लग चुकी थी मगर कोई जिजीविषा थी, जिससे उनकी मृत्यु टल रही थी।
मां को मुझसे ज्यादा ही स्नेह था भाई से भी ज्यादा, सच जब मां को चार लोग उठा कर चलने का उपक्रम करने लगे तो किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी खडी देखती मेरी आंखों से सब्र का बांध टूट पड़ा था और मैं भाई के गले लग कर बिलख पड़ी।
मां ने मुझे अंतिम समय में जो सच बताया उसे सुनकर मेरे पैरों तले जमीन निकल गई यह वह मां थी जिसने मुझे अपने बेटे के हिस्से का दूध पिला कर मुझे जिंदा रखा। मेरे और भाई की उम्र में दो माह का अंतर है। मेरी जन्म दात्री ने तो मुझे जाने किस मजबूरी में सर्द रातों में एक मामूली सी शाल में लपेटकर मां के खेत में मरने के लिए छोड़ दिया था, लेकिन मां ने मुझे अपने सीने से लगा लिया निरधन होने के बावजूद माने मुझे पालने का निर्णय ले लिया था मुझे मृत्यु द्ववार से वापस लाकर एक उज्जवल जीवन दिया था। भाई और मुझ में उन्होंने कभी भेदभाव नहीं किया यहां तक कि जब मेरा डॉक्टरी में सिलेक्शन हुआ मां ने मेरी फीस भरने के लिए खेत भी बेच दिया जिससे उनकी आजीविका चलती थी उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि उनके आगे का जीवन निर्वाह कैसे होगा, जिस से कोई रिश्ता नहीं था उसने कभी पराया नहीं समझा। कहते हैं मां सृजनकर्ता होती है और इस मां ने मुझे जन्म दिए बिना ही मेरे जीवन का निर्माण किया था
मां को 2 साल पहले कैंसर हो गया था। मां को साथ ले जाना चाहा उन्होंने अपनी मातृभूमि को छोड़ने से ही मना कर दिया। उन्होंने अकेले रहने का निर्णय लिया। पिताजी मेरे 10 वर्ष का होते ही छोड़ कर चले गए तब मां ने हम दोनों को अकेले ही संभाला पढ़ाया लिखाया और अपने पैरों पर खड़ा किया हम बड़े होते गए और मां बूढी होती गयी। आखिरी दिनों में भी मां ने मुझे अपनी कोख से जन्म ना देने का सच बता कर अपने मन में चल रहे द्न्द से मुक्त हो गई। ईश्वर जीवन में भिन्न-भिन्न लोगों से मिलवाता है पर मां भावनाओं और एहसासों से भरा एक ऐसा रिश्ता है जिसे कभी समझने की जरूरत नहीं पड़ती। मां तो तुम महान हो मैं तुम्हें शत शत नमन करती हूं।
— शोभा रानी गोयल