लघुकथा

पुनर्वास

पुनर्वास

हार्ट अटैक का पहला झटका झेलने के दूसरे ही दिन रमाकांत जी की अपनी निजी पुस्तकालय की सभी पुस्तकें जिला ग्रंथालय को दान करने के फैसले से मालती चकित थी।लगभग पचपन साल पहले जब रमाकांत से उनकी शादी हुई थी, तब घर में यत्र-तत्र-सर्वत्र किताबें ही किताबें बिखरी पड़ी रहती थीं। शादी के बाद मालती ने दो अलमारियाँ खरीदीं और उन किताबों को व्यवस्थित किया।समय के साथ उनके दोनों बच्चे बड़े होते गये और रमाकांत जी की पढ़ने-लिखने की आदत से अलमारियों की संख्या भी बढ़ती चली गई।बच्चे अब अपने पैरों पर खड़े होकर अलग-अलग शहरों में अपने-अपने बीबी-बच्चों के साथ बस गए।तीज-त्योहार पर सब इकट्ठे होते, तो बहू-बेटे उनसे कहा करते थे कि इतनी सारी किताबें रखने का क्या लाभ ? जो जरूरी हैं, उन्हें रखिए, बाकी सब को किन्हीं जरूरतमंद व्यक्ति या कबाड़ी को दे दीजिए। पर रमाकांत जी कहाँ मानते, वे उनसे अक्सर कहा करते थे, “इन किताबों के साथ हमारी कई खूबसूरत यादें जुड़ी हुई हैं। इन्हीं किताबों से दर्जनों लोगों को पीएच.डी. की डिग्री पाने में मदद मिली है। ये किताबें मेरे अकेलेपन के साथी हैं। इन्हीं किताबों के कारण आज भी लोग मेरे पास आते हैं। इन्हीं से मेरी पूछ-परख बनी हुई है। इन्हें कैसे किसी को भी दे दूँ।”परंतु अब ये अचानक सभी किताबें दान करने का विचार मालती की समझ से परे था। अंततः उसने इसका कारण पूछ ही लिया।रमाकांत जी लंबी सांस ले छोड़ते हुए बोले, “मालती, इनका हमारा साथ अब ज्यादा लंबा नहीं है। पहला झटका तो किसी तरह मैंने झेल लिया, अब आगे क्या भरोसा। दोनों बच्चे अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हैं। मुझे पूरा यकीन है कि मेरे बाद ये इन किताबों का भी अंतिम संस्कार कबाड़ी के हाथों कर ही देंगे, जो हम कभी नहीं चाहेंगे। तुम्हें याद है शादी के बाद कई बार हम मेरी बड़ी संख्या में इन किताबों और पत्रिकाओं को खरीदने की आदत को लेकर झगड़े हैं। यहाँ तक कि कई बार दो-दो दिन तक हमारी बातचीत भी बंद रहती थी। इन किताबों के कई प्रसंग मैंने तुम्हें जबरन भी सुनाए हैं। हमारे बच्चे भी इन पुस्तकों से ही बहुत कुछ सीख कर आज अपने पैरों पर खड़े हुए हैं। अब अपने जीते-जी कबाड़ी को देकर कैसे इनका अंतिम संस्कार कर दूँ ? इनका पुनर्वास जरूरी है मालती। ग्रंथालय में ये हमारे बाद भी अनगिनत लोगों के काम आएँगी।”कहते-कहते रमाकांत जी का गला भर आया था। श्रीमती जी  की ओर देखा, शून्य में ताकती दोनों आँखों से आँसू की धारा बह रही थी।

डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

रायपुर, छत्तीसगढ़

*डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

नाम : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा मोबाइल नं. : 09827914888, 07049590888, 09098974888 शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, राजनीति, शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.लिब. एंड आई.एससी., (सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण), पीएच. डी., यू.जी.सी. नेट, छत्तीसगढ़ टेट लेखन विधा : बालकहानी, बालकविता, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, हाइकू, शोधालेख प्रकाशित पुस्तकें : 1.) सर्वोदय छत्तीसगढ़ (2009-10 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 2.) हमारे महापुरुष (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 10-10 प्रति नि: शुल्क वितरित) 3.) प्रो. जयनारायण पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 4.) गजानन माधव मुक्तिबोध - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 5.) वीर हनुमान सिंह - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 6.) शहीद पंकज विक्रम - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 7.) शहीद अरविंद दीक्षित - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 8.) पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 9.) दाऊ महासिंग चंद्राकर - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 10.) गोपालराय मल्ल - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 11.) महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 12.) छत्तीसगढ रत्न (जीवनी) 13.) समकालीन हिन्दी काव्य परिदृश्य और प्रमोद वर्मा की कविताएं (शोधग्रंथ) 14.) छत्तीसगढ के अनमोल रत्न (जीवनी) 15.) चिल्हर (लघुकथा संग्रह) 16.) संस्कारों की पाठशाला (बालकहानी संग्रह) 17.) संस्कारों के बीज (लघुकथा संग्रह) अब तक कुल 17 पुस्तकों का प्रकाशन, 80 से अधिक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन. अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादक मण्डल सदस्य. मेल पता : [email protected] डाक का पता : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा, विद्योचित/लाईब्रेरियन, छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम, ब्लाक-बी, ऑफिस काम्प्लेक्स, सेक्टर-24, अटल नगर, नवा रायपुर (छ.ग.) मोबाइल नंबर 9827914888