फर्क
आखिरकार पापा ने अपनी प्रॉमिस पूरी कर दी। उन्होंने अपने इकलौते बेटे अमन से प्रॉमिस किया था कि यदि वह अपनी कक्षा में फर्स्ट आएगा, तो उसे गर्मी की छुट्टियों में एक दिन ऑफिस लेकर जाएँगे।रिजल्ट घोषित होने के दूसरे ही दिन वह अपने पापा के साथ ऑफिस पहुँच गया। वहाँ वह अपने पापा के कैबिन की हर छोटी-बड़ी चीज को बहुत ही गौर से देख रहा था, जो समझ में नहीं आता या नया लगता, अपने पापा से पूछ लेता। लगभग हर घंटा-डेढ़ घंटा में उसके पापा अलग-अलग लोगों के साथ ऑफिस के सामने स्थित होटल में चाय पीने जाते। अमन भी उनके साथ-साथ जाता। वहाँ उसे भी अपनी पसंद की टॉफी, चिप्स वगैरह मिल जाते। अमन ने गौर किया कि वे जब भी बाहर निकलते, पंखा-एसी को चालू ही छोड़ जाते, जबकि घर में पापा दो मिनट के लिए भी रूम छोड़ते हैं तो बिजली की खपत कम करने और मशीनों को गर्म होने से बचाने के लिए सभी स्वीच ऑफ कर देते हैं।
जब तीसरी बार वे ऐसे ही निकले, तो अमन से रहा नहीं गया। उसने कहा, “पापा, स्वीच ऑफ कर दें क्या ?”
पापा ने कहा, “रहने दो बेटा। चलने दो। बंद करने से जब हम यहाँ लौटेंगे, तो कैबिन हीट मिलेगा।”
अमन ने आश्चर्य से कहा, “पर पापा, घर में तो आप…”
पापा ने समझाया, “बेटा घर, घर होता है और ऑफिस, ऑफिस। दोनों में बहुत फर्क होता है।”
अमन को घर और ऑफिस के बीच का फर्क स्पष्ट रूप से दिख रहा था।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़