चलते-दौड़ते-भागते
अपना सब कुछ लुटाते
भूखे पेट पटरियों पर सोते
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे ! तुम कौन हो ?
सघन शीत में ठिठुरते
गरम ग्रीष्म में पिघलते
कठोर वर्षा से मचलते
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे ! तुम कौन हो ?
दाने-दाने को मोहताज
नहीं कोई श्रृंगार साज
चिथड़ों में छिपाते लाज
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे! तुम कौन हो ?
टुकड़ों पर पलते धनी वर्ग के
पल-पल छलते वे तो जग से
पी जाते घूंट आँसुओं का वे
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे! तुम कौन हो !
पेट की आग बुझाने को
घर परिवार चलाने को
जीवन भर मुस्काने को
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे! तुम कौन हो ?
बनाकर महल दुमहले तुम
पग-पग ठोकर खाते तुम
भूखे-प्यासे रह जाते तुम
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे! तुम कौन हो ?
दुनिया टिकी तुम्हारे दम पर
कल-कारखाने तुम्हारे श्रम पर
करती गर्व भारत माँ तुम पर
मन पर बोझ लिए
मन भर बोझा ढोते
अरे! तुम कौन हो ?
— निशा नंदिनी
तिनसुकिया,असम