लघुकथा

मुस्कान

आज सुबह-सुबह एक अनमोल वचन सामने आ गया.
”जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा,
जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा,
बिना संघर्ष के इन्सान चमक नहीं सकता,
जो जलेगा उसी दिये में तो, उजाला होगा.”
इस अनमोल वचन को देखते ही मुझे मुस्कान की याद आ गई. मुस्कान, जो हर समय हंसती-मुस्कुराती रहती है. कहीं भी मिले, हंसते हुए ”आंटी जी राम-राम” अवश्य कहती है. उसकी इस प्यारी हंसी के पीछे इतना दर्द छिपा हुआ होगा, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती.
वह अपने पति के साथ पार्क में मेरे आगे-आगे चल रही थी. सात सालों में उसके पति को मैंने पहली बार देखा था. दाहिने पांव में थोड़ी लचक, दाहिना हाथ मुड़ा हुआ और वाग्शक्ति नदारद. यह सब कैसे हुआ?
आज से नौ साल पहले वे तगड़े-बांके जवान थे. प्रॉपर्टी डीलर का जोरदार काम और साथ में सामाजिक सेवा अलग. किसी का कोई काम रुका-अटका पड़ा हो, फट से करवा देना उनकी विशेषता थी. वक्त के आगे किसी की नहीं चलती, वे कैसे बचते भला!
रात को सोए-सोए बी.पी. हाइ हो गया और मस्तिष्क में क्लॉट आ जाने से कौमा में चले गए. उसके बाद तो उनको महीने भर बाद अस्पताल से छुट्टी मिली. पानी की तरह पैसा बहा, हाथ-पैर में तो जो नुक्स आ गया वह तो फिर भी फिजियोथैरेपी से कुछ ठीक हो जाना था, लेकिन क्लॉट ठीक बोलने वाली जगह पर आया था, सो बोलना बिलकुल बंद हो गया. मुस्कान पति को ऐसी हालत में घर लाई, जब वे न हिल सकते थे, न हाथ-पांव हिला सकते थे और बोलना तो बिलकुल ही बंद हो गया था. मुस्कान ने पति को पूर्णतया ठीक करने के लिए कमर कस ली.
मुस्कान दूसरी सावित्री बन गई थी. छोटे-से बच्चे सहित परिवार संभालना, अपने हाथ से पति को नहलाना-धुलाना, खिलाना-पिलाना, दवा-दारू देना, मालिश करना, अस्पताल ले जाना, पति का बिजनेस संभालना, सब अकेले किया और हिम्मत से हंसते-हंसते किया. उसी हिम्मत का नतीजा है कि आज वे चल फिर पा रहे हैं, बिना बोले कुछ-कुछ बिजनेस का काम भी संभाल रहे हैं. बोलने की कोशिश बराबर जारी है. घरवाले तो उनकी सारी बात समझ ही जाते हैं, पड़ोसी भी राम-राम करते हैं, तो राम-राम भी बोल लेते हैं.
मुस्कान की निर्मल मुस्कान उसके लिए असीम ऊर्जा बन गई है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मुस्कान

  • लीला तिवानी

    असफलताओं की परवाह मत करो.
    इन पर विचार करो और उन्हें सुधारो,
    तो जीवन संवर जाएगा,
    असल में तो वही जीवन का सौंदर्य हैं.
    मुस्कान ने अपनी हिम्मत से असफलताओं को पंख नहीं फैलाने दिए और असफलताओं की डोर को पकड़कर उसी को अपनी हिम्मत बना दिया था, आज सफलता उसके सामने है.

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