गज़ल
साँसें धुआँ-धुआँ हैं, सीना ज़ख्म-ज़ख्म है
उसपर वो पूछता है कि किस बात का गम है
जिस वफा के भरोसे मेरी उम्र कट गई
अब जा के ये मालूम हुआ मेरा वहम है
फेर लेता है भले मुँह मुझको देख कर
लेकिन वो देखता तो है इतना ही क्या कम है
अपना बना के छोड़ना आदत है क्या तेरी
या मुझपे कोई खास तेरा रहम-ओ-करम है
पूजा करूँ तेरी कभी करूँ तेरा तवाफ
तू ही सनम बुतखाना मेरा तू ही हरम है
— भरत मल्होत्रा