झरती हुई संवेदना
सुबह-सुबह लैपटॉप खोलते ही स्क्रीन पर आए चित्र को देखकर संवेदना हैरान हो गई. एक तरफ पतझड़ के बिना पत्तों वाले पेड़ तो दूसरी ओर पीले फूलों से लदा हुआ गुलमोहर जैसे फूलों वाला ऑस्ट्रेलियाई जूनियल, मानो रात में दिन, अंधियारे में उजियारा और न जाने क्या-क्या! यह सुंदर नजारा देखकर उसे प्रिटिशा की याद आ गई.
खिले हुए हरसिंगार के सफेद फूलों जैसी प्रिटिशा, प्रकृति की दोस्त प्रिटिशा, वृक्षों और फूलों से बातें-मुलाकातें करती हुई प्रिटिशा, अपनी बगिया के हर फूल-पेड़ से बतियाती प्रिटिशा क्या कभी भुलाई जा सकती है! सच मानो तो प्रिटिशा उसे ऑस्ट्रेलिया की हरियाली का वास्तविक प्रतिनिधित्व करती हुई लगती थी.
सुबह के साढ़े छः बजे उठने के बाद जब संवेदना खिड़की खोलकर प्रभु का धन्यवाद करने के लिए हाथ जोड़ती, तो लगता था उसने प्रिटिशा को नमस्कार किया है. सर्दी हो या गर्मी, उस समय प्रिटिशा अपनी लॉन में वृक्षों को निहारती हुई मिलती थी. हर फूल की खूबसूरती का आनंद लेती 85 वर्षीया प्रिटिशा कभी ग्रास कटर मशीन लेकर लॉन की सुंदरता को चार चांद लगाती तो कभी साइड कटर मशीन लेकर लॉन के किनारों को समतल करती.
पतझड़ के मौसम में भी प्रिटिशा के लॉन में लगा पीले फूलों वाला जूनियल मानो संदेश दे रहा था, कि भले ही हम विकास के लिए पेड़ों की कटाई करके विनाश को आमंत्रित करते हैं, लेकिन जब तक प्रिटिशा जैसे प्रकृति-प्रेमी लोग मौजूद हैं, विकास की उम्मीद धूमिल नहीं हो सकती.
अब तक महज नाम से संवेदना की झरती हुई संवेदना पुनः स्पंदित हो गई थी.
प्रकृति प्रेम की दीवानी प्रिटिशा को सारा दिन लॉन में देखकर हैरानी होती थी. ऐसा लगता था, वह एक-एक पत्ते से, फूल से उनका हालचाल पूछ रही हो. उसकी बातें-मुलाकातें खत्म ही नहीं होती थीं. प्रकृति प्रेम के दीवानों का यही हाल तो होता है न! उन्हें प्रकृति के सान्निध्य में ही परमानंद की प्राप्ति होती है.