प्रहरी
दुखता हुआ नासूर हर पल दर्द देता है
गिरता हुआ आँसूं जब अकेला बना जाता है
दर्द का प्रहरी न जाने क्यों कोई नहीं बनता ,
सुख का दामन हर कोई थाम लेता है ।
अक्स क्यों ढूंढता है दिल गैरों में सिर्फ अपना
जाने वाला हर इंसान अकेला छोड़ जाता है
कैसे लिखूँ और किसके लिए ये दर्द में डूबे हुए अल्फाज ,
दुनिया मे कब किसी का दर्द कोई समझ पाता है ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़