यात्रावृत्त – मेला
प्रकृति की नैसर्गिक सुषमा का अवलोकन करना किसको नहीं भाता ,मुझे भी बहुत लुभाती है यह प्रकृति | विवाह के बाद प्रत्येक वर्ष जून में हम भारत के किसी न किसी प्रांत का भ्रमण अवश्य करते ,बात 2009 की है हम पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम आये यहाँ गुहाटी में हम रुके यहीं से मेघालय ,चेरापूंजी, शिलांग ,सिक्किम, गैंगटॉक के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य नयनाभिराम दृश्य की छवि को हृदय में समाए 21.6.2009 को वापस गुहाटी आ गए माँ कामाख्या का दर्शन करना शेष बचा था | पर यह क्या यहाँ माँ के दरबार के पट बंद हो चुके थे पता चला अब पट 25 को खुलेंगे |लोगों से बात करने पर पता चला कि यहाँ पर “अंबुवासी ” पारम्परिक मेला चल रहा है |
मेले जो हमारी संस्कृति ,सभ्यता, परंपरा और धरोहरों का निर्वहन करते हैं विविधता में एकता का पर्याय होते हैं |मेले को देखने की जिज्ञासा बढ़ रही थी |
ऐसा मेला मैंने इससे पूर्व नहीं देखा था | गुहाटी के पास नीलांचल पर्वत पर स्थित माँ कामाख्या देवी का मंदिर 52 शक्ति पीठों में सर्व प्रसिद्ध जहाँ माँ सती की योनि गिरी थी , शक्ति साधना ,सिद्धि साधना और तंत्र साधना का मुख्य केंद्र है |जहाँ मैंने जहाँ मैंने पशु पक्षियों की बलि अपनी आँखों से देखी |इस मेले में विश्व भर के साधु ,सन्यासी ,तांत्रिको की भीड़ होती है |ऐसी महिला तांत्रिकों को भी मैंने देखा जिनके बाल मीलों लंबे नाखून भी कई मीटर लंबे देख के मन भयभीत हो रहा था |
ऐसे साधू जिन्हें मैंने कुम्भ जैसे विशाल मेले में भी नहीं देखा था वह साधू सन्यासी साधना में लीन इस मेले में दिखाई दिए |
आम्बूवासी मेले के दौरान दो प्रकार के प्रसाद मिलते है | एक तो वो जो दुकानों मिठाई जिसमे लड्डू पेड़ा बर्फी लाई नारियल कलावा सिंदूर दूसरा मुख्य प्रसाद लाल वस्त्र , सिंदूर और जल|
मान्यता है कि आज भी माँ की मूर्ति से प्रत्येक वर्ष रज निकलता है और मूर्ति पर पड़ा वस्त्र जिसमे भीगता है |यही वस्त्र माँ का मुख्य प्रसाद है तांत्रिक तंत्र साधना के लिए सिद्धि के लिए इसे प्राप्त करते है |इन्ही दिनों इस मेले का आयोजन होता है गिरी कंदराओं में अदृश्य साधु भी प्रकट होजाते है |माँ के दर्शनार्थ हमने पाँच दिन गुहाटी में बिताए |26 जून को प्रातः 3 बजे मेले की भीड़ में दर्शन के लिए लाइन में खड़े हम दोनों ,पर लाइन खत्म ही नहीं हो रही थी |शाम को 3बजे ये प्रतीक्षा समाप्त हुई |कहीं कबूतरों का रक्त कहीं बकरों के रक्त के बीच हम माँ की गुफा के भीतर पहुंचे और माँ का आशीर्वाद प्राप्त किया |विवाह की सालगिरह के दिन माँ का दर्शन कर अलौकिक आनंद की अनुभूति हो रही थी |
सभी मंदिरों के कपाट खुल चुके थे |इसके बाद हम वशिष्ठ आश्रम गए दूसरे दिन ब्रह्म पुत्र नदी में यात्रा का सुखद आनंद लेते हुए डौल गोविंद मंदिर तथा पुराने शिव मंदिर का दर्शन किया |डौल गोविंद मंदिर में प्रशाद रूप में खाई खीर का स्वाद आज भी याद आता है |शाम की ट्रेन से हम लखनऊ के लिए प्रस्थान करते है |यह यात्रा आज भी सुखद अनुपम क्षणों की याद दिलाती है
अविस्मरणीय है यह मेला ,आशा करती हूँ शीघ्र ही इस मेले का हिस्सा बनूँ और माँ कामाख्या के दर्शनों का पुनः लाभ पाऊँ|
©मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल ‘
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश