सरस्वती वंदना
हे हंस वाहिनी मुझे वरदान दो वरदान दो |
अपनी कृपा की कोर दो उत्थान दो वरदान दो |
वागीश वीणा वादिनी करुणा करो करुणा करो |
मुझको अगम स्वर ज्ञान का वरदान दो वरदान दो |
निष्काम हो हर कामना मैं नित करूँ आराधना |
मन का कलुष तम दूर हो वरदान दो वरदान दो |
नव गीत नव लय ताल दो शुचि शब्द का भंडार दो |
हर कल्पना साकार हो वरदान दो वरदान दो |
हो विमल मति हो सरल गति शालीनता उर में बसे |
बृम्हासुता ज्योतिर्मया वरदान दो वरदान दो |
हे धवल वसना भगवती विद्या की देवी वंदिता |
हिमराशि सी मुक्ता लड़ी सुर पूजिता आनंदिता |
सम्पूर्ण जड़ता दूर हो वरदान दो वरदान दो |
अपनी कृपा – – – – – – – – – – – – – – – –
हे हंसवाहिनी – – – – – – – – – – – – – – – –
मंजुषा श्रीवास्तव’मृदुल’