हास्य कविता (राजनीति)
राजनीति का गिरगिट
पल पल रंग बदल रहा
कौआ भी देखो यहां
हंस की चाल चल रहा
तुम मुझे बुरा कहोगे तो
क्या अच्छा तुम पाओगे
एक सुनाओगे तो बदले
अतीत की गिनती पाओगे
एक दूसरे का नामकरण भी
अब इस उम्र में हो रहा है
जो हंसता था ज़िन्दगी में
राजनीति में वो रो रहा है
टिकटे बदली दल बदले
क्या क्या न हो रहा है
मुफ्त में फिल्मो का सा
मनोरंजन यहां हो रहा है
पढ़े लिखे और डिग्री वाले
सब एक से दिख रहे हैं
तू तू मैं मैं के खेल में
बहुत कुछ और सीख रहे हैं
काम गिनाएं शान बनाएं
दूजे का न कहीं नाम आए
चिल्लाकर दंगल में वो अब
बोलने और को न दे रहे हैं
कब आएगी यारो २३ मई
ये खेल अजब सा खत्म होगा
शांत होकर हारा हुआ दल
बहानो को खोज रहा होगा।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !