क्रूर होते मौसम के लिए कौन जिम्मेदार है ?
इस पृथ्वी के सम्पूर्ण पर्यावरण और प्रकृति को जितनी तबाही और विनाश इस मनुष्य प्रजाति ने किया है, उतना करोड़ों -अरबों सालों से इस पृथ्वी पर अवतरित बड़े से बड़े किसी जीव समूह ने नहीं किया है। वैसे कहने को तो मानव अपने को इस दुनिया के सभी जीवों में सबसे समुन्नत और बुद्धिमान प्राणी मानता है, लेकिन सबसे बड़े दुखद और आश्चर्य की बात है कि वह प्रकृति और पर्यावरण के आलने में जिनकी बदौलत अपना जीवन चला रहा है, उन्हीं का अपनी हवश और लालच के वशीभूत होकर निर्दयतापूर्वक तेजी से विध्वंस कर रहा है। मसलन जंगल, नदियां, पर्वत, समुद्र, हवा, पानी आदि-आदि सब श्रोतों का ही गला घोंट रहा है या उन्हें इतना प्रदूषित और मलीन कर दे रहा है कि वे मरणासन्न अवस्था में जा चुके हैं।
अगर असली जंगलों का बेतहाशा नाश होगा और कंक्रीट के जंगलों की भरमार होगी, नदियों में करोड़ों लोगों के सीवेज, हजारों कारखानों के रासायनिक कचरे, प्रतिदिन लाखों मनुष्यों और हजारों पशुओं के जले, अधजले, पूरे शव यूँ ही फेंके जायेंगे, कार लॉबी के दबाव में घुटने टेकने वाली सरकारें पूरे देश में चौड़ी-चौड़ी हाईवे का तेजी से निर्माण इसलिए कराएं, कि प्रतिवर्ष सड़क पर उतरने वाली दो करोड़ पचास लाख (25000000) पेट्रोल और डीजल चालित हर तरह की छोटी बड़ी गाड़ियां सरपट दौड़ सकें, इन करोड़ों गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषण से लाखों सालों से जमें हिमालय के बर्फ के ग्लेशियर जो साल भर बहने वाली नदियों के श्रोत होते हैं, तबाह होने के कगार पर हैं। इसके अतिरिक्त ये काला और प्रदूषित विषाक्त धुँआ इस पृथ्वी को गर्म करने (ग्लोबल वार्मिंग) के सबसे बड़े कारण हैं।
इसीलिए प्रतिष्ठित वैश्विक संस्था ‘एल डोरैडो ‘ के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादे ग्लोबल वार्मिंग के शिकार गर्म हो रहे 15 स्थान सभी भारत में ही हैं। इस देश की सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि यहाँ के राजनैतिक जमात के लिए पर्यावरण संरक्षण और उसकी चिंता का पदानुक्रम सबसे निचले पायदान पर है। वास्तविकता यह है कि यहाँ जितना वृक्षारोपण होता है, उसका दस गुना तेजी से वनों का विध्वंस किया जा रहा है! इस स्थिति में बारिश भी कम होगी, तालाब और जलाशय भी सूख जाएंगे, भूगर्भीय जल भी धीरेधीरे समाप्ति के कगार पर चले जाएंगे।
अभी भी समय है कि हम, हमारा समाज और हमारी सरकारें ये सुनिश्चित करें कि हर परिवार कम से कम एक पेड़ पाल-पोस कर बड़ा करे, वर्षा के पानी का प्रत्येक घर, स्कूल, ऑफिसों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों आदि में संचयन की व्यवस्था हो, तालाबों, ताल-तलैयोंं और विभिन्न जलश्रोतों का ईमानदारी से परिरंक्षण हो, जितना संभव हो पुराने हरे-भरे वृक्षों को बचाया जाय, सरकारें कार लॉबी के दबाव से मुक्त होकर प्राइवेट कारों और टैक्सियों की जगह सार्वजनिक परिवहन की अधिकतम उपयोग की सुविधा जनसाधारण को देना सुनिश्चित करें। इन कुछ उपायों से यहाँ के मौसम और बढ़ती गर्मी से जरूर राहत मिलेगी।
— निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद