2019 आम लोकसभा चुनाव सम्पन्न मन में प्रश्न अनेक
2019 आम लोकसभा चुनाव सम्पन्न मन में प्रश्न अनेक
शशांक मिश्र भारती
पिछले कई माह से चल रहा सामान्य लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सात चरणों का महासंग्राम आज सम्पन हो गया। इस बीच अनेक उतर चढ़ाव आये आरोप प्रत्यारोप लगे।हिंसा प्रतिहिंसा हुई।हर बार की तरह चुनाव अनेक शब्दों का विकास कर गया।पुरानों शब्दों का भी पुनः अभ्यास हुआ।मजे हुए बयानवीर एक के बाद एक सामने आकर अपने अपने दलों का अपने तरीके से कायाकल्प करते रहे।पर कोई दूध से कम धुला नहीं है इसमें किसी को शक न होना चाहिए।
हां अलग कुछ हुआ तो उसमें पहला काम चुनाव आयोग ने कई महानुभावों के मुख पर कई कई बार कई कई दिनों के लिए ताले लगाये।संसदीय इतिहास में पहली धारा 324 का प्रयोग कर एक राज्य में एक दिन पहले चुनाव प्रचार रोका गया।हर वाजिब डण्डा आयोग ने चलाने का प्रयास किया।पर फिर भी अपने आपको निष्पक्ष सिद्ध कर पाया ऐसा नहीं लगता।क्योंकि लोगों की चलती जुबानों से तो नहीं लगता।हमें खतरा आगामी तेइस का भी जब परिणाम आने के बाद कहीं आयोग और उसकी मशीनरी व ईवीएम कोप का शिकार न बनें।
इस बार दूसरा सबसे बड़ा अन्तर दिखा कि 2014 की तरह भ्रष्टाचार और महंगाई कोई मुद्दा न था।राफेल और चौकीदार चोर जैसे मुद्दे कागजों पर राजनेताओं की जुबान पर जितने मजबूत दिख रहे थे जमीन पर नहीं थे।कई जगह कागजों पर जाति धर्म क्षेत्र व स्थानीयता का गठजोड़ मजबूत दिख रहा था वास्तव में जमीन पर उतना नहीं था या नाममात्र का ही था।कश्मीर से कन्याकुमारी कच्छ से अरुणाचल तक अगर कोई मुद्दा था तो वह था मोदी लाओ या मोदी हटाओ।इस बात में भी एक बात स्पष्ट थी कि एक तरफ तो मोदी थे ही और सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री भी बनेंगे।तो दूसरी ओर मोदी हटाओं में यह तय न था कि मोदी नही तो कौन ? अर्थात पांच दस बीस पच्चीस सीट जातने वालों में सें कौन बनेगा।इसलिए स्पष्ट नेता घोषित होने का लाभ कहीं न कहीं एन डी ए को मिल रहा था।साथ ही उसके पीछे कुछ देश व्यापी सफल योजनायें भी थीं।
देश में सवा आठ करोड़ युवा मतदाता जो पहली बार मतदान करने जा रहा था और जो पिछले कई चुनावों से मतदान करता आ रहा था वह इस बार बड़ी गम्भीरता से चुनाव को ले रहा था।उसके लिए पहला मुद्दा देश था देश की सुरक्षा और देश का विकास।वह कह रहा था कि स्थानीय मामले हम विधानसभा चुनाव में देख लेंगे।वह यह नहीं चाहता था कि पिछले दशकों की भांति कोई अस्वाभाविक प्रधानमंत्री प्रकट हो और आम जनता के साथ साथ देश को भारी कीमत चुकानी पड़े।
इस बात से तो हम भी सहमत हैं कि जब जब अस्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री घोषित हुए और उनको मौका मिला तो देश पीछे को गया।आम जनता में हताशा पैदा हुई।इसमें हम चरण सिंह जी का कार्यकाल देखें विश्वनाथ प्रतापसिंह चन्द्रशेखर देवैगौड़ा इन्द्रकुमार गुजराल या पीवी नरसिम्हा राव जी का देश जानता है।देश की छवि कहां से कहां पहुंची यह भी किसी से छुपा नहीं है।दूसरी ओर स्वाभाविक व परिपक्व प्रधानमंत्री हम देखें तो नेहरू शास्त्री इन्दिरा वाजपेयी व मोदी जी का कार्यकाल न केवल देश के अन्दर अच्छे परिणाम देने वाला विश्वास बनाये रखने वाला रहा अपितु देश के बाहर भी प्रतिष्ठा बनाये रखने में कोई कसर न छूटी।आस पड़ोस के देशों पर आशानुरूप प्रभाव भी रहा।अच्छे परिणाम भी मिले।
अब सवाल यही उठता है कि चुनाव सम्पन्न हो गया है।सभी का भाग्य ईवीएम में बन्द है। जनता का विश्वास भी सागर की लहरों सा है कि 23 को क्या होगा।हालांकि राजनीतिक पण्डितों ज्योतिषियों व चैनलों के अनुमान आ गये हैं।उनकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर कोई स्पष्ट पैमाना न होने से कुछ कहना जल्दबाजी होगी।पर अपेक्षा यही है कि जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने वाला देश को देश के अन्दर व देश के बाहर प्रतिष्ठा दिलाने वाला एक अनुभवी परिपक्व और विश्वसनीय प्रधानमंत्री मिले।जो देश को अपना अधिकार नही बल्कि कर्तव्य मानकर आगामी पांच साल शासन करे।