गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

बहुत रौशन सवेरा भी नही था

बहुत रौशन सवेरा भी नही था
मगर इतना अंधेरा भी नही था

मिरी बेचैनियां बढ़ने लगीं थीं
मुझे यादों ने घेरा भी नही था

तुम्हारी भी कमी कर देता पूरी
ये सुख ऐसा घनेरा भी नही था

वहाँ खुशियों की बस्ती कैसे बसती
वहाँ ग़म का बसेरा भी नही था

उसे मैं ढूंढते उस पार पहुंचा
जहां सांसों का फेरा भी नही था

अंकित शर्मा ‘अज़ीज़’
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अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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