ग़ज़ल
गुल की’ खुशबू तैरती गुलजार का
वक्त है माली के इक उपहार का |
सावधानी से सही कहना यहाँ
कान होता है इसी दीवार का |
अस्पतालों में दवाई की कमी
है परेशानी सभी उपचार में |
प्रेयसी की चुप्पी’ कहती प्यार है
जो जुबाँ का अनकहा इकरार का |
वो जुवान अपनी अभी खोली, कहा
प्रेम था, वह निष्कपट इज़हार का |
जिंदगी की नाव का नाविक मिला
डर नहीं कोई अभी मझधार का |
ढाल औ तलवार होती जंग में
था जमाना एकदा तलवार का |
कालीपद ‘प्रसाद’