ग़ज़ल
पर्व है शुभ, लगा गुलाल हमें
रब ! अभी करने’ दे धमाल हमें |
अब तलक हम नहीं हुए काबिल
वज्म से तू नहीं निकाल हमें |
अनुसरण तो तुझे किये ऐ रब!
योग्य साँचे में’ तेरे ढाल हमें |
क्या किया अब तलक, न हमको पूछ
मुर्ख हैं हम, न कर सवाल हमें |
मानता हूँ गुनाह भूल गया
तू न कर अब, यहाँ हलाल हमें |
कौन देगा हमें सहारा अब
कर्म का दो अभी मआल हमें |
चाहता हूँ बनूँ महा ‘काली’
तू बना आज बेमिसाल हमें |
मआल= फल, परिणाम
कालीपद ‘प्रसाद’