ग़ज़ल
घर द्वार/ नहीं कर्ज/ में’ दिलगीर/ गर आये
सुन कष्ट नयन मेरे भी’ आंसू से भर आए |
सब शत्रु का’ छक्का छुड़ा रणभूमि हिलाई
ललकारते’ शमशीर उठाकर वो’ घर आए |
मायूस न हो, दूर करो सारी’ निराशा
गर आपको’ आश्रय न मिले आप घर आए |
सरहद में’ हमारे सभी’ सैनिक है’ निरापद
वे जीत लिए शत्रु किला ये ख-बर आए |
मालूम था’ इच्छा से मुझे उसने भुलाया
गलती से’ सही वो अभी मेरे डगर आए |
सोचो नहीं’ काली’ यहां संसार बसाना
तौफीक से’ जानम अभी मेरे ही’ घर आए |
शब्दार्थ :तौफिक – दैवयोग से
कालीपद ‘प्रसाद’