ग़ज़ल
समझना यही था कि क्या चाहते थे
प्रजा न्याय को माँगना चाहते थे |
किसी में हुआ कुछ, अलग ही किसी में
सभी एकसा फैसला चाहते थे |
फसल की दरें देहकाँ को मिला था
गुमाश्ता सभी फायदा चाहते थे |
गरीबी कभी देश से ख़त्म होगी?
अभागा सभी आसरा चाहते थे |
परेशान थे लोग दर आसमां पर
कमाई सभी दोगुना चाहते थे |
सभी नीति को आजमाकर वो’ देखे
चुनावों में’ वो जीतना चाहते थे |
सभी रहनुमा एक ही कामना की
सभी जीत का सिलसिला चाहते थे |
हमेशा अभावों में’काटा समय को
प्रगति के लिए हौसला चाहते थे |
चुराकर मेरा दिल कहाँ चोर भागा
उसी का सही इत्तला चाहते थे |
गयी छोड़ मझधार में बेसहारा
मुहब्बत लहर तैरना चाहते थे |
विरह में लगातार बेचैन ‘काली’
दुखों की घड़ी भूलना चाहते थे |
कालीपद ‘प्रसाद’