बचपन
बचपन का सफर
कितना सुहाना होता है ना !
न कोई चिंता न कोई फिक्र
हर उलझन से मुक्त
जिंदगी बसंत की भांति
इधर से उधर
उन्मुक्त बहता रहता
बेतहासा खुशियां खुद में समेटे
गमों से दूर
मासूम हसरतों को मुट्ठी में दवाएं
नई कोशिशें नई उड़ाने
मासूम मन
इच्छाओं की एक-एक मोतियों को
ख्वाबों में संजोता
वो हसीन लम्हा
बचपन का खजाना
मालामाल थी जिंदगी हर किसी की
आह !
कितना अच्छा होता न !
जिंदगी बचपने में ही बीत जाती
छल कपट से दूर दर्पण सा
पर समय का पड़ाव ज्यो ही
इस उम्र को पार करता
जिंदगी
बचपन की मासूमियत झटककर
दुःख दर्द के गलियों से गुजरता
सिकुड़ते माथे की लकीरों के साथ
जिंदगी के डगर पर इंसान
हिम्मत और हौसलों के साथ
कभी हंसते-मुस्कुराते तो कभी
बेबस अथाह दर्द दिल में दबाएं
अंतिम पड़ाव की ओर
डगमगाता चलता चला जाता।
— बबली सिन्हा