गीत
मन पतंगों सा, मैं तारों तक उड़ाने जा रही हूँ।
मुट्ठी में जुगनू लिए मैं दिन उगाने जा रही हूँ।
पांव में पायल भले ही,
आत्मा घायल भले ही,
राह में जंगल भले ही,
घोर दावानल भले ही,
ज़िंदा हूँ तो ज़िन्दगी के गीत गाने जा रही हूँ।
मुट्ठी में जुगनू लिए मैं दिन उगाने जा रही हूँ।
बीते, वो मौसम नहीं मैं,
कैसे भी तो कम नहीं मैं,
देख लो गुमसुम नहीं मैं,
हूँ ख़ुशी, मातम नहीं मैं,
फेंक दी सारी उदासी मुस्कुराने जा रही हूँ।
मुट्ठी में जुगनू लिए मैं दिन उगाने जा रही हूँ।
फैसलों के हौंसलें हैं,
सब गिले कदमों तले हैं,
दर्द जितने मनचले हैं,
आँखों में मैंने मले हैं,
सोए सपनों की मैं नींदों को उड़ाने जा रही हूँ।
मुट्ठी में जुगनू लिए मैं दिन उगाने जा रही हूँ।
डॉ मीनाक्षी शर्मा
ग़ाज़ियाबाद