वो चार लोग
माँ मुझे आज बताओ,
वो चार लोग कहाँ है??
जिनके लिए तुम ,
बचपन से कहती आई ।
बाहर मेरे ज्यादा रहने से,
तुम कहती थी हमेशा,
कोई देख ले तो,
चार लोग क्या कहेंगे??
बड़ी हुई मैं जब तब,
पहनती मन का कुछ,
तुम रोकती मुझे कहती,
चार लोग क्या कहेंगे ??
अफसर बनना चाहती थी,
रोक लिया तुमने ,
ये कह कर कि ..
चार लोग क्या कहेंगे??
तुम्हारी पसन्द से शादी की,
नही थी खुश पति संग,
तुमने बोलने से रोक दिया,
चार लोग क्या कहेंगे कह कर।
माँ आज तो बता दो,
तुम्हारे चार लोग कहाँ है,
क्यो नही बोले तब जब,
लाडो बन रही निर्भया।।
मेरी बहन चढ़ गई ,
दहेज की बलि जब ,
चार लोग कहाँ थे ,
क्यो नही बोले वो चार लोग।।
मैं मिलना चाहती हूँ,
उन चार लोगों से आज,
जो बिन गलती बोलते है ,
अन्याय को चुप हो देखते है ।।
कब कुछ कहेंगे तुम्हारे,
वो चार लोग ।
कब तक चुप रहेंगे ,
देख अन्याय को चार लोग ।।
बताओ माँ ,आज बताओ,
कहाँ है वो चार लोग ।।
जिनके लिए मैं रोज़,
बचपन से सुनती आई।।
सारिका औदिच्य