लेखनी सदैव लोकमंगलकारी होनी चाहिए
कलमकारिता लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है। प्रतिपल परिवर्तित होनेवाले जीवन और जगत का दर्शन कराया जाना लेखनी द्वारा ही संभंव है। परिस्थितियों के अध्ययन, चिंतन-मनन और आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति और दूसरों का कल्याण अर्थात् लोकमंगल की भावना ने ही कलमकारिता को जन्म दिया है । सी. जी. मूलर ने बिल्कुल सही कहा है कि-सामायिक ज्ञान का व्यवसाय ही कलमकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं सटीक प्रस्तुतीकरण होता है।’
वस्तुुुत: कलमकारिता समय के साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है।श्री अखिलेश चतुर्वेदी के अनुसार कलमकारिता(अर्थात् लेेेेखकीय कार्य) विशिष्ट देश, काल और परिस्थिति के आधार पर तथ्यों का, परोक्ष मूल्य का संदर्भ प्रस्तुत करती है |”टाइम्स पत्रिका के अनुसार- पत्रकारिता इधर-उधर उधर से एकत्रित, सूचनाओं का केंद्र, जो सही दृष्टि से संदेश भेजने का काम करता है, जिससे घटनाओं के सहीपन को देखा जाता है, तथा लेखकीय कार्य जो कि समाज के हालातों का बेबाक खुलासा करता है। पर यह आवश्यक है कि कलमकार शोषितों/ पीड़ितों/ पददलितों के पक्ष में ही खड़ा दिखना चाहिए।
वास्तव में, पत्रकारिता वह विद्या है जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्तव्यों, और उद्देश्यों का विवेचन किया जाता है|और जो अपने युग और उसकेे हालातों के संबंध में लिखा जाए,वह साहित्य है|
वास्तव मेें,लेखकीय/पत्रकारिता कार्य का संबंध उस धर्म से है, जिसमें वह तत्कालिक घटनाओं, इतिहास, संस्कृति व समाज की समस्याओं का अधिक सही और निष्पक्ष विवरण पाठक के समक्ष प्रस्तुत करता है|
पर यह काम वस्तुनिष्ठ तथा निष्पक्ष रुप से किया जाना चाहिए,और जनहित में सत्य की आधारशिला परआधारित होना चाहिए ,तथा जनकल्याण की भावना से जुड़कर सामाजिक परिवर्तन का साधन बनना चााहिए |
सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही लेेेेखनी सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह भी पत्रकारोंं/लेखकों का है। कोई भी लोकतंत्र तभी तक सशक्त है जब तक कलमकार सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक कलमकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये।
— प्रो. शरद नारायण खरे