सभ्यता और शान का मापदंड — अंग्रेज़ी भाषा ??
मैं अंग्रेज़ी भाषा या सभ्यता के विरुद्ध नहीं हूँ, उनकी संस्कृति और अनुशासन का सम्मान करता हूँ, पर यह नहीं चाहता की हम भारतीय अंग्रेज़ी भाषा और अंग्रेज़ी संस्कारों को अपने सनातन विचार धारा से बेहतर समझ कर उसे अपनी शान समझे.
जर्मनी, फ्रांस , रूस , चीन, जापान , कोरिया , पोलैंड , जैसे विकसित देश अपने देश में केवल अपनी ही भाषा और संस्कृति के बल पर तकनीकी क्षेत्र में इतना आगे बढ़कर दुनिया पर छा सकते हैं तो हम अपनी भाषा के बल पर क्यों आगे नहीं बढ़ सकते.
हम भारतियों ने हमेशा ही हर विदेशी नाम और काम को ,वास्तु ,विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में बेहतर समझा है, और अपने में एक हीन भावना को जन्म दिया है, लेकिन आज के इस कंप्यूटर युग में इस में कोई अंतर नहीं रह गया है, हम भारतीय भी किसी प्रकार से किसी भी क्षेत्र में अब विश्व के किसी भी विकसित देश के बराबर चाहे न हो पर अब तकनीक के क्षेत्र में उस से कम भी नहीं हैं, बात केवल सोच बदलने की है और अपनी भाषा और संस्कृति को भी संग संग अपनाने की हैं,
हमारा भारत देश एक बहु प्रांतीय और बहु भाषायी देश है, अगर प्राथमिक शिक्षा से ही मातृ भाषा और क्षेत्रीय भाषा को अनिवार्य कर दिया जाये और उच्च से उच्च शिक्षा को भी अंग्रेज़ी भाषा के स्थान पर अपनी भाषा में ही पढ़ाया जाये तो विदेशी नाम के मुक़ाबले आने वाली हीन भावना को समाप्त किया जा सकता है, लेकिन यह सब अनुशासन और मर्यादा में रह कर ही करना होगा,